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________________ {621) FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFER भक्षयन् माक्षिकं क्षुद्रजंतुलक्षक्षयोद्भवम् । स्तोकजन्तुनिहन्तृभ्यः शौनिकेभ्योऽतिरिच्यते ॥ (है. योग. 3/37) जिनके हड्डियां न हों, ऐसे जीव क्षुद्रजंतु कहलाते हैं, अथवा तुच्छ, हीन जीव भी क्षुद्र म माने जाते हैं। ऐसे लाखों क्षुद्र जंतुओं के (धुआं करने से होने वाले) विनाश से उत्पन्न हुए मद्य 卐 का सेवन करने वाला आदमी थोड़े-से पशु को मारने वाले कसाई से भी बढ़ कर पापात्मा है। 16221 समुत्पद्य विपद्येह देहिनोऽनेकशः किल। मद्यीभवन्ति कालेन मनोमोहाय देहिनाम्॥ मौकबिन्दुसंपन्नाः प्राणिनः प्रचरन्ति चेत् । पूरयेयुर्न संदेहं समस्तमपि विष्टपम्॥ । (उपासका. 21/274-275) जन्तु अनेक बार जन्म-मरण करके काल के द्वारा प्राणियों का मन मोहित करने के लिए मद्य का रूप धारण करते हैं। मद्य की एक बूंद में इतने जीव रहते हैं कि यदि वे फैलें तो समस्त जगत् में भर जाएं। इसमें कुछ भी संदेह नहीं है। (623) मद्यं मांसं क्षौद्रं पञ्चोदुम्बरफलानि यत्नेन । हिंसाव्युपरतिकामैर्मोक्तव्यानि प्रथममेव ॥ (पुरु. 4/25/61) हिंसा-त्याग के इच्छुक पुरुषों को प्रथम ही शराब, मांस, शहद और पांच उदुम्बर 卐 फलों (के सेवन) को यत्नपूर्वक त्याग देना चाहिए। 1624} मद्यं मोहयति मनो मोहितचित्तस्तु विस्मरति धर्मम्। विस्मृतधर्मा जीवो हिंसामविशङ्कमाचरति ॥ (पुरु. 4/26/62) शराब मन को मोहित करती है, और मोहित चित्त वाला पुरुष तो धर्म को भूल ही 卐 जाता है तथा धर्म को भूला हुआ जीव निडर होकर हिंसा का आचरण करता है। EEEEEEEEEEEEYEFFFFFFFFFFFFFFFFFFE* अहिंसा-विश्वकोश/265]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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