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________________ EिEEEEEEEEEEEEEEEEEEEENA {597) जं कीरइ परिरक्खा णिच्चं मरण-भयभीरु जीवाणं। तं जाण अभयदाणं सिहामणिं सव्वदाणाणं ॥ (वसु. श्रा. 238) मरण से भयभीत जीवों का जो नित्य परिरक्षण किया जाता है, वह सब दानों का शिरोमणि रूप 'अभयदान' है। {598) दाणाण सेठं अभयप्पयाणं सच्चेसु या अणवजं वयंति। (सू.कृ. 1/6/23) दानों में अभयदान और सत्य-वचन में अनवद्य-वचन को श्रेष्ठ कहा जाता है। $$$$$$$$$弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱羽化 {599) सर्वेषामभयं प्रवृद्धकरुणैर्यद्दीयते प्राणिनाम्, दानं स्यादभयादि तेन रहितं दानत्रयं निष्फलम्। आहारौषधशास्त्रदानविधिभिः क्षुद्रोगजाङ्योद्भयं यत्तत्पात्रजने विनश्यति ततो दानं तदेकं परम्॥ (पद्म. पं. 7/11) ___ करुणावान् व्यक्तियों द्वारा सभी प्राणियों को अभय-दान जो दिया जाता है, वही 'दान' है, और (अभय-दान) के बिना तीनों (आहार, औषध व शास्त्र/ज्ञान) का दान निष्फल ही है। आहार-दान से क्षुधा के भय का, औषध-दान से रोग के भय का तथा शास्त्रदान से अज्ञान के भय का उन्मूलन जो सत्पात्र में किया जाता है, वही एकमात्र दान परम उत्कृष्ट है । (तात्पर्य यह है कि आहार, औषध व शास्त्र के दान भी एक प्रकार से अभय卐दान ही हैं।) 明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFEHEHEESE अहिंसा-विश्वकोश/2571
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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