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________________ {595) दसविहपाणाहारो अणंतभवसायरे नमतेण। भोयसुहकारणटुं कदो य तिविहेण सयलजीवाणं॥ पाणिवहेहि महाजस चउरासीलक्खजोणिमज्झम्मि। उप्पजंत मरंतो पत्तोसि णिरंतरं दुक्खं ॥ जीवाणमभयदाणं देहि मुणी पाणिभूयसत्ताणं। कल्लाणसुहणिमित्तं परंपरा . तिविहसुद्धीए॥ (भा.पा. 133 __ हे मुनि! अनन्त संसार-सागर में घूमते हुए तूने भोग-सुख के निमित्त मन, वचन, *काय से समस्त जीवों के दस प्रकार के प्राणों का आहार किया है। हे महायश के धारक : मुनि! प्राणिवध के कारण तूने चौरासी लाख योनियों में उत्पन्न होते और मरते हुए निरन्तर दुःख प्राप्त किया है। हे मुनि! तू परम्परा से तीर्थंकरों के कल्याण सम्बन्धी सुख 卐 के लिये मन, वचन, काय की शुद्धता से प्राणीभूत अथवा सत्त्व नाम धारक समस्त जीवों ॥ को अभय दान दे। 弱弱弱弱弱弱弱→$$$$$$$$$$~$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 如$明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 {596) अभयं सर्वसत्त्वानामादौ दद्यात्सुधीः सदा। तद्धीने हि वृथा सर्व: परलोकोचितो विधिः॥ दानमन्यद्भवेन्मा वा नरश्चेदभयप्रदः। सर्वेषामेव दानानां यतस्तदानमुत्तमम्॥ तेनाधीतं श्रुतं सर्वं तेन तप्तं तपः परम्। तेन कृत्स्नं कृतं दानं यः स्यादभयदानवान् ॥ (उपासका. 43/773-775) सब से प्रथम सब प्राणियों को अभयदान देना चाहिए। क्योंकि जो अभयदान नहीं दे सकता, उस मनुष्य की समस्त पारलौकिक क्रियाएं व्यर्थ हैं। और कोई दान दो या न दो, किन्तु अभयदान जरूर देना चाहिए, क्योंकि सब दानों मे अभयदान श्रेष्ठ है। जो अभय-दान देता है, वह सब शास्त्रों का ज्ञाता है, परम तपस्वी है और सब दानों का कर्ता है। SETTES [जैन संस्कृति खण्ड/256 E NSESEENEFITS
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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