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________________ 馬 $$$$$$ 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 ● अहिंसा - धर्माराधकः प्राणियों के लिए अभयदाता 卐 तू भी अभयदाता बन । इस अनित्य जीवलोक में तू क्यों हिंसा में संलग्र है?" 卐 ! {591} अभओ पत्थिवा! तुब्भं अभयदाया भवाहि य । अणिच्चे जीवलोगम्मि किं हिंसाए पसज्जसि ? (संजय राजा को अनगार गर्दभालि का प्रतिबोध - ) " पार्थिव ! तुझे अभय है। पर, (592) लोगं च आणा अभिसमेच्चा अकुतोभयं । (उत्त. 18 / 11 ) मुनि (अतिशय ज्ञानी पुरुषों) की आज्ञा - वाणी से लोक को - अर्थात् अप्काय के {593} किं न तप्तं तपस्तेन किं न दत्तं महात्मना । वितीर्णमभयं येन प्रीतिमालम्ब्य देहिनाम् ॥ (आचा. 1/1/2/सू. 22) जीवों का स्वरूप जानकर उन्हें अकुतोभय बना दे अर्थात् उन्हें किसी भी प्रकार का भय उत्पन्न न करे, संयत रहे । (594) अभयं यच्छ भूतेषु कुरु मैत्रीमनिन्दिताम् । पश्यात्मसदृशं विश्वं जीवलोकं चराचरम् ॥ ( ज्ञा. 8 /53/525) जिस महापुरुष ने जीवों को प्रीति का आश्रय देकर अभयदान दिया उस महात्मा ने $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ कौन सा तप नहीं किया और कौन सा दान नहीं किया? अर्थात् उस महापुरुष को समस्त तप व दान के सुफल प्राप्त होते हैं; क्योंकि अभयदान में सब तप व दान समाहित होते हैं । ( ज्ञा. 8 /51/523) 卐 हे भव्य ! तू जीवों को अभयदान दे तथा उनसे प्रशंसनीय मित्रता कर और समस्त त्रस व स्थावर जीवों को अपने समान देख । 6卐事事事卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 अहिंसा - विश्वकोश | 255] 卐 筑 卐 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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