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________________ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 筑 翁 筑 编 चाहिए । 高卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 (586) असंगिहीयपरिजणस्स संगिण्हणयाए अब्भुट्ठेयव्वं भवति । उसे 筑 अनाश्रित एवं असहाय हैं, उनको सहयोग तथा आश्रय देने में सदा तत्पर रहना (587) गिलाणस्स अगिलाए वेयावच्चकरणयाए अब्भुट्ठेयव्वं भवति । रोगी की सेवा के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए । (588) बाला य बुड्ढा य अजंगमा य, लोगे वि एते अणुकंप णिज्जा । (589) सोऊण वा गिलाण, पंथे गामे य भिक्खवेलाए । तिरियं गच्छति, लग्गति गुरुए सवित्थारं ॥ (31. 8/111) बालक, वृद्ध और अपंग व्यक्ति, विशेष अनुकंपा (दया) के योग्य होते हैं। (ठा. 8 / 111 ) (बृह. भा. 4342 ) विहार करते हुए, गांव में रहते हुए, भिक्षाचर्या करते हुए यदि सुन पाए कि कोई साधु या साध्वी बीमार है, तो शीघ्र ही वहां पहुंचना चाहिए। जो साधु शीघ्र नहीं पहुंचता है, गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। (590) जह भमर-महुयर - गणा णिवतंति कुसुमितम्मि वणसंडे । तह होति णिवतियव्वं, गेलण्णे कतितवजढेणं ॥ (नि. भा. 2970 / बृह. भा. 3769 ) ! הפרס जिस प्रकार कुसुमित उद्यान को देख कर भौरे उस पर मंडराने लग जाते हैं, उसी כב פרפר प्रकार किसी साथी को दुःखी देख कर उसकी सेवा के लिए अन्य साथियों को सहज भाव कसे उमड़ पड़ना चाहिए । [ जैन संस्कृति खण्ड / 254 多 (नि. भा. 2971) רכרכרכרכרברברברם 馬 $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$魯 卐 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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