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________________ HTTEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE (अहिंसा की कसौटी परः देव, गुरु, शास्त्र व धर्म का चयन) 卐O हिंसा-दोष से गुक्त ही शास्त्र व धर्म सेवनीय {600 श्रुतं सुविहितं वेदो द्वादशाङ्गमकल्मषम्। हिंसोपदेशि यद्वाक्यं न वेदोऽसौ कृतान्तवाक्॥ पुराणं धर्मशास्त्रं च तत्स्याद् वधनिषेधि यत्। वधोपदेशि यत्तत्तु ज्ञेयं धूर्तप्रणेतृकम् ॥ ___ (आ.पु. 39/22-23) जिसके बारह अंग हैं, जो निर्दोष है और जिसमें श्रेष्ठ आचरणों का विधान है, ऐसा शास्त्रं ही 'वेद' कहलाता है। जो हिंसा का उपदेश देने वाला वाक्य है वह 'वेद' नहीं है, उसे ।। तो यमराज का वाक्य ही समझना चाहिए। म पुराण और धर्मशास्त्र भी वही हो सकता है जो हिंसा का निषेध करने वाला हो। 卐 इसके विपरीत, जो पुराण अथवा धर्मशास्त्र हिंसा का उपदेश देते हैं, उन्हें धूर्तों का बनाया है हुआ समझना चाहिए। {601) वरमेकाक्षरं ग्राह्यं सर्वसत्त्वानुकम्पनम्। न त्वक्षपोषकं पापं कुशास्त्रं धूर्तचर्चितम् ॥ (ज्ञा. 8/25/497) सर्व प्राणियों पर दया करने वाला तो एक अक्षर भी श्रेष्ठ है और ग्रहण करने योग्य है, परन्तु धूर्त तथा विषयकषायी पुरुषों का रचा हुआ और इंद्रियों का पोषक जो पापरूप कुशास्त्र है, वह श्रेष्ठ नहीं है। {602) निर्दयेन हि किं तेन श्रुतेनाचरणेन च। यस्य स्वीकारमात्रेण जन्तवो यान्ति दुर्गतिम्॥ (ज्ञा. 8/24/496) जिसमें दया नहीं है ऐसे शास्त्र तथा आचरण से क्या लाभ? क्योंकि ऐसे शास्त्र के या आचरण के अंगीकार मात्र से ही जीव दुर्गति को प्राप्त करते हैं। REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/258
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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