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________________ 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 (574) जायन्ते भूतयः पुंसां याः कृपाक्रान्तचेतसाम् । चिरेणापि न ता वक्तुं शक्ता देव्यपि भारती ॥ जिनका चित्त दयालु है, उन पुरुषों को जो सम्पदा होती है, उनका वर्णन सरस्वती देवी भी बहुत काल पर्यंत करे तो भी उससे नहीं हो सकता, फिर अन्य से तो किया ही कैसे जा सकता है? 卐 卐 (575) भूदेसु दयावण्णे चउदस चउदससु गंथपरिसुद्धे। चउदसपुव्वपगब्भे चउदसमलवज्जिदे वंदे ॥ (576) उaकुणदि जोवि णिच्चं चादुव्वण्णस्य समणसंघस्स । कायविराधणरहिदं सोवि सरागप्पधाणो से ॥ (ज्ञा. 8 /52/524) जो एकेन्द्रियादि चौदह जीवसमास रूप जीवों पर दया को प्राप्त हैं, जो आदि चौदह प्रकार के अन्तरङ्ग परिग्रह से रहित होने के कारण अत्यन्त शुद्ध हैं, जो चौदह 馬 पूर्वो के पाठी हैं तथा जो चौदह मलों से रहित हैं, ऐसे मुनियों को मैं नमस्कार करता हूं (अर्थात् वे वन्दनीय हैं ) । अनुकम्पा व दया का स्वरूप और उसके प्रेरक उपदेश (यो. भ. 9) मिथ्यात्व (577) सत्त्वे सर्वत्र चित्तस्य दयार्द्रत्वं दयालवः । धर्मस्य परमं मूलमनुकम्पां प्रचक्षते ॥ परम मूल बतलाते हैं। 编 [ जैन संस्कृति खण्ड / 250 जो, ऋषि, मुनि, यति और अनगार के भेद से चतुर्विध मुनि-समूह का, षट्कायिक 卐 筑 जीवों की विराधना से रहित, उपकार करता है - वैयावृत्त्य के द्वारा उन्हें सुख पहुंचाता है, वह 筑 भी सराग-प्रधान अर्थात् शुभोपयोगी साधु है । 筑 。$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$舂 ( प्रव. 3/49) ( उपासका 21/230 ) सब प्राणियों के प्रति चित्त का दयालु होना 'अनुकम्पा' है। दयालु पुरुष इसे धर्म का 卐卐卐卐事事事事卐卐卐卐卐卐卐卐卐事事事,
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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