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________________ (578) तिसिदं बुभुक्खिदं वा दुहिदं दठूण जो दुहिदमणो। पडिवजदि तं किवया तस्सेसा होदि अणुकंपा। (पंचा. 137) जो भूखे प्यासे अथवा अन्य प्रकार से दुःखी प्राणी को देखकर स्वयं दुःखित हृदय होता हुआ दयापूर्वक उसे अपनाता है- उसका दुःख दूर करने का प्रयत्न करता है, उसके अनुकम्पा होती है। {579) जो उ परं कंपंतं, दठूण न कंपए कढिणभावो। एसो उ निरणुकंपो, अणु पच्छाभावजोएणं ॥ (बृह. भा. 1320) जो कठोर हृदय दूसरे को पीड़ा से प्रकंपमान देखकर भी प्रकम्पित नहीं होता, वह 卐 निरनुकंप (अनुकंपारहित) कहलाता है। चूंकि अनुकंपा का अर्थ ही है- कांपते हुए को卐 卐 देख कर कंपित होना। (580) छिन्नान् बद्धान् रुद्धान् प्रहतान् विलुप्यमानांश्च मान्, सहैनसो निरैनसो वा परिदृश्य मृगान्विहगान् सरीसृपान् पशृंश्च मांसादिनिमित्तं प्रहन्यमानान् परलोकैः परस्परं वा तान् हिंसतो भक्षयतश्च दृष्ट्वा सूक्ष्माननेकान् कुन्थुपिपीलिकाप्रभृतिप्राणभृतो 卐 मनुजकरभखरशरभकरितुरगादिभिः समृद्यमानानभिवीक्ष्य असाध्यरोगोरगदशनात् परि तप्यमानान् , मृतोऽस्मि नष्टोऽस्म्यभिधावते ति रोगाननुभूयमानान्, गुरुपुत्रकलत्रादिभिरप्राप्तकालः सहसा वियुज्य ऊर्ध्वभुजान् विक्रोशतः, स्वाङ्गानि घ्रतश्च * शोकेन, उपार्जितद्रविणैर्वियुज्यमानान् कृपणान् प्रनष्टबन्धून् धैर्यशिल्पविद्याव्यवसायहीनान् 卐 यान् प्रज्ञाप्रशक्त्या वराकान् निरीक्ष्य तद् दुःखमात्मस्थमिव विचिन्त्य स्वास्थ्यमुपशमनमनुकम्पाः। सुदुर्लभं मानुषजन्म लब्ध्वा मा क्लेशपात्राणि वृथैव भूत। धर्मे शुभे भूतहिते यतध्वमित्येवमाद्यैरपि चोपदेशैः।। 卐TEST अहिंसा-विश्वकोश/251)
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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