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________________ N E E EEEEEEEEEEEEEEEEEEE {560) क्रोधवढेस्तदहाय शमनाय शुभात्मभिः। श्रयणीया क्षमैकैव संयमारामसारणिः॥ (है. योग. 4/11) उत्तम आत्मा को चाहिए कि वह क्रोधरूपी अग्नि को तत्काल शांत करने के लिए एकमात्र क्षमा का ही आश्रय ले। क्षमा ही क्रोधाग्नि को शांत कर सकती है। क्षमा संयम रूपी उद्यान को हराभरा बनाने के लिए क्यारी है। {561) सुयणो न कुप्पइ च्चिय अह कुप्पइ मंगुलं न चिंतेइ। अह चिंतेइ न जंपइ अह जंपइ लिजरो होइ॥ (वज्जालग्ग 4/3) सज्जन क्रोध ही नहीं करता है, यदि करता है तो अमंगल नहीं सोचता, यदि सोचता है तो कहता नहीं और यदि कहता है तो लज्जित हो जाता है। $$$$$$s$$$$$$$$$$$$$$s$$$頭弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 {562} खमावणयाए णं भन्ते! जीवे किं जणयइ? खमावणयाए णं पल्हायणभावं जणयइ। पल्हायणभावमुवगए य सव्वपाणभूय-जीवसत्ते सु मित्तीभावमुप्पाएइ । मित्तीभावमुवगए यावि जीवे भावविसोहिं काउण निब्भए भवइ॥ (उत्त. 29/सू.18) भन्ते! क्षामणा (क्षमापना) करने से जीव को क्या प्राप्त होता है? (उत्तर-) क्षमापना करने से जीव प्रह्लाद भाव (चित्तप्रसत्तिरूप मानसिक प्रसन्नता) को प्राप्त होता है। प्रह्लाद भाव से सम्पन्न साधक सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों के साथ मैत्रीभाव को प्राप्त होता है। मैत्रीभाव को प्राप्त जीव भाव-विशुद्धि कर निर्भय होता है। [जैन संस्कृति खण्ड/246
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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