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________________ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$气 節 编卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 {557) 卐 卐 अस्य हानिर्ममात्मार्थसिद्धिः स्यान्नात्र संशयः । हतो यदि न रुष्यामि रोषश्चेद् व्यत्ययस्तदा ॥ (ज्ञा. 18/70/961) यदि इसके द्वारा पीड़ित होकर मैं क्रोध नहीं करता हूं तो इसकी हानि (पापबन्ध) और मेरा आत्मप्रयोजन ही सिद्ध होता है, परन्तु यदि मैं उसके ऊपर क्रोध करता हूं तो उससे विपरीत अवस्था होती है - उसका भला न भी हो, परन्तु मेरी हानि ( दुर्गति) निश्चित हैइसमें कुछ भी सन्देह नहीं है । (558) प्राणात्ययेऽपि प्रत्यनीकप्रतिक्रिया । मता सद्भिः स्वसिद्ध्यर्थं क्षमैका स्वस्थचेतसाम् ॥ संपन्ने प्राणों के नष्ट होने पर भी शान्तचित्त साधुजनों की प्रतिकूल प्रतिक्रिया ( प्रतीकार) एक क्षमा ही है, जो आत्मसिद्धिका कारण है । इसलिए वह सत्पुरुषों को विशेष अभीष्ट है। (559) इयं निकषभूरद्य संपन्ना पुण्ययोगतः । समत्वं किं प्रपन्नोऽस्मि न वेत्यद्य परीक्ष्यते ॥ 编 समताभाव को - राग-द्वेष से रहित अवस्था को ( ज्ञा. 18/71/962) परीक्षा करने का यह सुअवसर प्राप्त हुआ है। | साधु प्राप्त हुए उपद्रव को शान्तिपूर्वक सहता है ।] [ अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार शाणोपल (कसौटी पर कस कर सुवर्ण के खरे-खोटेपन की परीक्षा की जाती है, उसी प्रकार इन उपद्रवों के द्वारा मेरी क्षमाशीलता की भी परीक्षा की जा रही है। यदि मैं क्रोध को प्राप्त होकर ! इस समय इस परीक्षा में असफल हो जाता हूं तो अब तक का मेरा वह सब परिश्रम व्यर्थ हो जावेगा। यह विचार करके 卐 卐 筑 (ज्ञा. 18/72/963) आज यह (वध-बन्धनादिरूप बाधा प्राप्त हुई है, वह तो ) पुण्य-योग है जिसके 馬 कारण मुझे यह अवसर मिल पाया है कि मैं अपने को कसौटी पर कस सकूं। मैं क्या 馬 प्राप्त हो चुका हूं अथवा नहीं, इसकी 馬 新编编 अहिंसा - विश्वकोश | 245] 。$$$$$$$ 馬 卐 噩 卐 筑 馬 卐 卐 馬
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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