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________________ $$$$$$$$$$$$$$$ $$$$$$$$$$$$$$$ 卐 卐 卐卐卐卐卐卐卐 {544} क्रोधवह्नेः क्षमैकेयं प्रशान्तौ जलवाहिनी । उद्दामसंयमारामवृतिर्वा ऽत्यन्तनिर्भरा 11 क्रोधरूप अग्नि को शान्त करने के लिए यह क्षमा अनुपम नदी के समान है तथा वह उत्कृष्ट संयमरूप उद्यान की अतिशय दृढ़ 'वृत्ति' (कांटों आदि से निर्मित खेत की बाड़) है। (545) जितात्मानो जयन्ति क्ष्मां क्षमया हि जिगीषवः । (ज्ञा. 18/49 / 939) अपकार करने वाले इस क्रोध से दूर रहिए, क्योंकि जीत की इच्छा रखने वाले जितेन्द्रिय पुरुष केवल क्षमा के द्वारा ही पृथिवी को जीतते हैं। (546) पावं खमइ असेसं, खमाय पडिमंडिओ य मुणिपवरो । (आ.पु.34/76) भन्ते ! क्रोध-विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मुनिप्रवर क्रोध के अभावरूप क्षमा से मंडित है, वह समस्त पाप कर्मों को अवश्य क्षय करता है । (भा.पा. 108) नहीं करता है, और पूर्व - बद्ध कर्मों की निर्जरा भी करता है । $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ (547) कोहविजएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कोहविजएणं खन्तिं जणयइ, कोहवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ । 卐 卐 ( उत्त. 29 / सू.68) (उत्तर - ) क्रोध - विजय से जीव क्षमा को प्राप्त होता है, क्रोध- वेदनीय कर्म का बन्ध 编卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 卐 अहिंसा - विश्वकोश | 241 ] 筑 卐 筑 箭
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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