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________________ LEICICLELELELELELELCLCLCLELELELELELELELELELELELELELELELELELELE 72 {548) हओ न संजले भिक्खू मणं पि न पओसए। तितिक्खं परमं नच्चा भिक्खु-धम्म विचिंतए॥ (उत्त. 2/26) मारे-पीटे जाने पर भी भिक्षु क्रोध न करे। और तो क्या, दुर्भावना से भी मन को को दूषित न करे। तितिक्षा-क्षमा को साधना का श्रेष्ठ अंग जान कर मुनिधर्म का चिन्तन करे। {549) क्षमया मृदुभावेन, ऋजुत्वेनाऽप्यनीहया। क्रोधं मानं तथा मायां, लोभं रुन्ध्याद् यथाक्रमम्॥ __ (है. योग. 4/82) संयम-प्राप्ति के लिए प्रयन्न करने वाला योगी क्षमा से क्रोध को, नम्रता से मान को, 卐 ॐ सरलता से माया को और संतोष से लोभ को रोके। $听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明听听听听 15501 शमाम्बुभिः क्रोधशिखी निवार्यतां नियम्यतां मानमुदारमार्दवैः। (ज्ञा. 18/109/1007) हे मुनीन्द्र! शम (क्रोध का निग्रह-क्षमा) रूप जल से क्रोधरूपी अग्नि का निवारण म करना चाहिए, मृदुतापूर्ण व्यवहार से महान् मान का निग्रह करना चाहिए। 如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乎 (551) क्षान्त्या क्रोधो, मृदुत्वेन मानो, मायाऽऽर्जवेन च। लोभश्चानीहया, जेयाः कषायाः इति संग्रहः॥ (है. योग. 4/23) क्रोध को क्षमा से, मान को नम्रता से, माया को सरलता से, और लोभ को नि:स्पृहता-संतोष से जीते। इस प्रकार चारों कषायों पर विजय प्राप्त करना चाहिए; यह 卐 समुच्चयरूप में निचोड़ है। N EFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF [जैन संस्कृति खण्ड/242
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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