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________________ $$$$$$$$$$$$$$$$ 卐 馬 事 $$$$$$$$$$$$$$ 编卐 筑 卐卐卐卐卐卐卐卐卐 (537) उत्पद्यमानः प्रथमं दहत्येव स्वमाश्रयम् । क्रोधः कृशानुवत् पश्चादन्यं दहति वा न वा ।। (है. योग. 4/10 ) किसी प्रकार का निमित्त पाकर क्रोध उत्पन्न होते ही सर्वप्रथम आग की तरह अपने आश्रयस्थान (जिसमें वह उत्पन्न होता है, उसी) को ही जलाता है । बाद में अग्नि की तरह दूसरे को जलाए, चाहे न भी जलाए । (538) हिंसनं साहसं द्रोहः पौरोभाग्यार्थदूषणे । ईर्ष्या वाग्दण्डपारुष्ये कोपजः स्याद्गणोऽष्टधा ॥ ( उपासका 31/420) (539) जह कोइ तत्तलोहं गहाय रुट्ठो परं हणामित्ति । पुव्वदरं सोडज्झदि डहिज्ज व ण वा परो पुरिसो ॥ तध रोसेण सयं पुव्वमेव डज्झदि हु कलकलेणेव । अण्णस्स पुणो दुक्खं करिज्ज रुट्ठो ण य करिज्ज ॥ हिंसा, साहस, मित्रादि के साथ द्रोह, (पौरोभाग्य) दूसरों के दोष देखने का स्वभाव, अर्थदोष अर्थात् न ग्रहण करने योग्य धन का ग्रहण करना और देयधन को न देना, ईर्ष्या, कठोर वचन बोलना और कठोर दण्ड देना- ये आठ क्रोध के अनुचर हैं। (भग. आ. 1356-57) 馬 卐卐卐卐卐卐卐卐事事事事事事事事事事事 $$$$$$$$$$$$$$$$$$$ अहिंसा - विश्वकोश | 2391 卐 馬 馬 筑 जैसे कोई पुरुष रुष्ट होकर दूसरे का घात करने के लिए तपा लोहा उठाता है। ऐसा क करने से दूसरा उससे जले या न जले, पहले वह स्वयं तो जलता ही है । उसी प्रकार पिघले 卐 ! हुए लोहे की तरह क्रोध से पहले वह (क्रोधी) स्वयं जलता है, दूसरे को वह दु:खी कर पाए या न कर पाए। 卐 筑
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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