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________________ $$$$$$$$$ 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐筑, ● हिंसात्मक भावों में प्रमुखः क्रोध 卐 卐 卐 卐 (533) पासम्मि बहिणिमायं, सिसुंपि हणेइ कोहंधो। (वसु. श्रा. 67 ) क्रोध में अंधा हुआ मनुष्य, पास में खड़ी मां, बहिन और बच्चे को भी मारने लग जाता है। (534) कोवेण रक्खसो वा णराण भीमो णरो हवदि । कुद्ध मनुष्य राक्षस की तरह भयंकर बन जाता है । (535) संगात्कामस्ततः क्रोधस्तस्माद्धिंसा तयाऽशुभम् । (536) तत्रोपतापकः क्रोधः, क्रोधो वैरस्य कारणम् । दुर्गतेर्वर्तनी क्रोधः, क्रोधः शम- सुखार्गला ॥ (भग. आ. 1355) परिग्रह से विषयवांछा उत्पन्न होती है, फिर उस विषय - वांछा से क्रोध, उस क्रोध से हिंसा और उसके फल स्वरूप हिंसक प्रवृत्तियों का उदय होता है। (ज्ञा. 16/11/831 ) क्रोध, मान, माया, लोभ- इन चारों कषायों में भी, प्रथम कषाय क्रोध शरीर और मन 馬 दोनों को संताप देता है; क्रोध वैर का कारण है, क्रोध दुर्गति की पगदंडी है और क्रोध ही 卐 प्रशमसुख को रोकने के लिए अर्गला के समान है। [ जैन संस्कृति खण्ड /238 (है. योग. 4 / 9 ) 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐编编卐 $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 馬
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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