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________________ '''''''' {503} वशात् स्पर्शसुखास्वाद-प्रसारितकरः करी। आलानबन्धनक्लेशमासादयति तत्क्षणात् ॥ पयस्यगाधे विचरन् गिलन् गलगलामिषम्। मैनिकस्य करे दीनो मीनः पतति निश्चितम्॥ निपतन् मत्त-मातङ्ग-कपोले, गन्धलोलुपः। कर्णतालतलाघातात् मृत्युमानोति षट्पदः॥ कनकच्छेदसंकाश-शिखालोकविमोहितः । रभसेन पतन् दीपे शलभो लभते मृतिम् ॥ हरिणो हरिणीं गीतिमाकर्णयितुमुधुरः। आकर्णाकृष्टचापस्य, याति व्याधस्य वेध्यताम्॥ (है. योग. 4/28-32) ___ हथिनी के स्पर्श-सुख का स्वाद लेने के लिए सूंड फैलाता हुआ हाथी क्षण भर में खंभे के बन्धन में पड़ कर क्लेश पाता है। अगाध जल में रहने वाली मछली जाल में लगे हुए लोहे के कांटे पर मांस का टुकड़ा खाने के लिए ज्यों ही आती है, त्यों ही नि:संदेह वह ॥ बेचारी मच्छीमार के हाथ में आ जाती है। मदोन्मत्त हाथी के गंडस्थल पर गंध में आसक्त । हो कर भौंरा बैठता है, परन्तु उसके कान की फटकार से मृत्यु का शिकार हो जाता है। सोने के तेज के समान चमकती हुई दीपक की लौ के प्रकाश को देख कर पतंगा मुग्ध हो जाता 卐 है और दीपक पर टूट पड़ता है; जिससे वह मौत के मुंह में चला जाता है। मनोहर गीत सुनने ज में तन्मय बना हुआ हिरन कान तक खींचे हुए शिकारी के बाण से बिंध जाता है और मृत्यु को प्राप्त करता है। ''' ' O हिंसक वृत्ति का कारणः भूख की पीड़ा '''''' (504) आहारत्थं मज्जारिसुंसुमारी अही मणुस्सी वि। दुब्भिक्खादिसु खायंति पुत्तभंडाणि दइयाणि ॥ इहपरलोइयदुक्खाणि आवहंते णरस्स जे दोसा। ते दोसे कुणइ णरो सव्वे आहारगिद्धीए॥ (भग. आ.1642-43) FFFFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE* [जैन संस्कृति खण्ड/218
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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