SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ IN LELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELEUCLEUEUELELELELELE {500 听听听听听听听听听听听 मीना मृत्यु प्रयाता रसनवशमिता दन्तिनः स्पर्शरुद्धाः, नद्धास्ते वारिबन्धे ज्वलनमुपगताः पत्रिणश्चाक्षिदोषात् । भृङ्गा गन्धोद्धताशाः प्रलयमुपगताः श्रोतुकामाः कुरङ्गाः, कालव्यालेन दष्टास्तदपि तनुभृतामिन्द्रियार्थेषु रागः॥ (ज्ञा. 18/149/1047) मछलियां रसना इन्द्रिय के वशीभूत होकर मृत्यु को प्राप्त हुई हैं, हाथी स्पर्श-सुख के वशीभूत होकर वारिबन्ध में बांधे गये हैं, पतंग चक्षु-इन्द्रिय के दोष से अग्नि को ॐ प्राप्त हुए हैं- अग्नि में भस्मसात् हुए हैं, गन्ध में उत्कट इच्छा रख कर भ्रमर नाश को प्राप्त हुए हैं तथा गीत सुनने में अनुरक्त होकर हिरण भी कालरूप सर्प के द्वारा काटे गये हैं मरण को प्राप्त हुए हैं। फिर भी प्राणियों को इन इन्द्रियविषयों में अनुराग है, यह आश्चर्य ॐ व खेद की बात है। {501) एकैककरणपरवशमपि मृत्युं याति जन्तुजातमिदम्। सकलाक्षविषयलोलः कथमिह कुशली जनोऽन्यः स्यात् ॥ (ज्ञा. 18/150/1048) यह जन्तु-समूह एक-एक इन्द्रिय के अधीन भी होकर मरण को प्राप्त होता है। फिर जो अन्य प्राणी यहां सभी इन्द्रियों के विषयों में आसक्त हो, उसकी तो कुशलता कैसे रह सकती है? वह तो दुःसह दुख का भाजन होगा ही। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听的 明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 {502} कुलघाताय पाताय, बन्धाय च वधाय च। अनिर्जितानि जायन्ते, करणानि शरीरिणाम्॥ (है. योग. 4/27) अविजित (काबू में नहीं की हुई) इन्द्रियां शरीरधारियों के कुल को नष्ट करने वाली, पतन, बन्धन और वध कराने वाली होती हैं। REFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFEE अहिंसा-विश्वकोश/217]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy