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________________ F FEEEEEEEEEEEEEEEEEEE .MA {496) __ बहुदुक्खा हु जंतवो। सत्ता कामेंहि माणवा। अबलेण वहं गच्छंति सरीरेण पभंगुरेण। ___ अट्टे से बहुदुक्खे इति बाले पकुव्वति। एते रोगे बहू णच्चा आतुरा परितावए। णालं पास। अलं तवेतेहिं। एतं पास मुणी! महब्भयं । णातिवादेज्ज कंचणं। (आचा. 1/6/1 सू. 180) संसार में (कर्मों के कारण) जीव बहुत ही दुःखी हैं। (बहुत-से) मनुष्य कामम भोगों में आसक्त हैं। (जिजीविषा में आसक्त मानव) इस निर्बल (निःसार और स्वतः नष्ट 卐 होने वाले) शरीर को सुख देने के लिए अन्य प्राणियों के वध की इच्छा करते हैं [अथवा कर्मोदयवश अनेक बार वध-विनाश को प्राप्त होते हैं] । E वेदना से पीड़ित वह मनुष्य बहुत दुःख पाता है। इसलिए वह अज्ञानी (वेदना के 卐 उपशमन के लिए) प्राणियों को कष्ट देता है, (अथवा प्राणियों को क्लेश पहुंचाता हुआ वह धृष्ट (बेदर्द) हो जाता है)। इन (पूर्वोक्त) अनेक रोगों को उत्पन्न हुए जान कर (उन रोगों की वेदना से) आतुर 卐 मनुष्य (चिकित्सा के लिए दूसरे प्राणियों को) परिताप देते हैं। तू (विशुद्ध विवेक-दृष्टि से) देख। ये (प्राणिघातक-चिकित्साविधियां कर्मोदयजनित रोगों का शमन करने में पर्याप्त) समर्थ नहीं है। (अतः जीवों को परिताप देने वाली) 卐 इन (पाप-कर्मजनक चिकित्साविधियों) से तुमको दूर रहना चाहिए। ॐ मुनिवर! तू देख! यह (हिंसामूलक चिकित्सा) महान भयरूप है। (इसलिए चिकित्सा के निमित्त भी) किसी प्राणी का अतिपात/वध मत कर। $听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 卐ई '卐 ''''' airyFFFF FFFFFFFFFFF NI अहिंसा-विश्वकोश/2151
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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