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________________ YEHEYEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEENAME (391) दमो देवगुरूपास्तिानमध्ययनं तपः। सर्वमप्येतदफलं हिंसां चेन्न परित्यजेत् ॥ (है. योग. 2/31) जब तक कोई व्यक्ति हिंसा का त्याग नहीं कर देता, तब तक उसका इंद्रियदमन, देव और गुरु की उपासना, दान, शास्त्राध्ययन और तप आदि सब बेकार हैं, निष्फल हैं। 5弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱~~~~ (392) अहिंसा समयं चेव एयावंतं वियाणिया। (सू.कृ. 1/1/4/85;1/11/10) समता ही अहिंसा है, इतना ही ज्ञानी को जानना है। (393) उवेहेणं बहिया य लोकं । से सव्वलोकंसि जे केइ विण्णू। अणुवियि पास णिक्खित्तदंडा जे केइ सत्ता पलियं चयंति। णरा मुतच्चा धम्मविदु त्ति अंजू आरंभजं दुक्खमिणं ति णच्चा। (आचा. 1/4/3 सू. 140) इस (अहिंसादि धर्म से) विमुख (बाह्य) जो (दार्शनिक) लोग हैं, उनकी उपेक्षा कर! जो ऐसा करता है, वह समस्त मनुष्य लोक में जो कोई विद्वान है, उनमें अग्रणी विज्ञ 卐 (विद्वान्) है। तू अनुचिन्तन करके देख-जिन्होंने (प्राणि-विघातकारी) दण्ड (हिंसा) का त्याग किया है, (वे ही श्रेष्ठ विद्वान् होते हैं।) जो सत्त्वशील मनुष्य धर्म के सम्यक् विशेषज्ञ होते हैं, वे ही कर्म (पलित) का क्षय करते हैं। ऐसे मनुष्य धर्मवेत्ता होते हैं, अतएव वे सरल (ऋजु-कुटिलता रहित) होते हैं, (साथ ही वे) शरीर के प्रति अनासक्त या कषायरूपी अर्चा 卐 को विनष्ट किये हुए (मृतार्च) होते हैं, अथवा शरीर के प्रति भी अनासक्त होते हैं। A LELELELELELELELELELELELELELALELELELELELELELELELELELELELELELE अहिंसा-विश्वकोश/175) את
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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