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________________ 節 (सू.कृ. 1/3/3/57) ( यदि श्रोता अज्ञानी व राग-द्वेष युक्त होने से हिंसक प्रवृत्ति के हैं तो उपदेशक मुनि को संकट का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि) राग-द्वेष से अभिभूत और मिथ्या 筆 $$$$$$$$$$$$$$$$$$骹 (387) रागदोसाभिभूयप्पा मिच्छत्तेण अभिया । अक्कोसे सरणं जंति टंकणा इव पव्वयं ॥ 事 धारणाओं से भरे हुए लोग गाली-गलौज की शरण में चले जाते हैं, जैसे तंगण ( म्लेच्छ जाति के लोग) पर्वत की शरण में । ● अहिंसाः विद्वान् / ज्ञानी की पहचान (388) तसपाणे वियाणेत्ता संगहेण य थावरे | जो न हिंसइ तिविहेणं तं वयं बूम माहणं ॥ 卐卐编编 ( जयघोष मुनि का विजयघोष ब्राह्मण को कथन - ) जो त्रस और स्थावर जीवों को ! सम्यक् प्रकार से जानकर उनकी मन, वचन और काया से हिंसा नहीं करता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। (389) सेहु पन्त्राणमंते बुद्धे आरंभोवरए । जो आरम्भ (=हिंसा) से उपरत है, वही प्रज्ञानवान् बुद्ध है । {390) यं खुणाणिणो सारं जं ण हिंसइ कंचणं । न न न न [ जैन संस्कृति खण्ड / 174 (उत्त. 25/23) ज्ञानी होने का यही सार है कि वह किसी की हिंसा नहीं करता । ( आचा. 1/4/4/145) (सू.कृ. 1/1/4/85;1/11/10) 事 $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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