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________________ 驅 出品: से निवृत्ति), उपशम (इन्द्रिय और मन का शमन अथवा रागद्वेषाभावजनित उपशमन), निर्वाण (समस्तद्वन्द्वोपरमरूप या सर्वकर्मक्षयरूप मोक्ष), शौच (निर्लोभता), आर्जव 卐 भूत जीव (सरलता), मार्दव (कोमलता), लाघव (लघुता - हलकापन) तथा समस्त प्राणी, और सत्त्व के प्रति अहिंसा आदि धर्मों के अनुरूप (या प्राणियों के हितानुरूप) विशिष्ट चिन्तन करके धर्मोपदेश दे। 卐 蛋蛋蛋蛋 鐧$$$$$$$$$$$$$$$$$$ (382) विद्वत्त्वं सच्चरित्रत्वं दयालुत्वं प्रगल्भता । वाक्सौभाग्येङ्गितज्ञत्वे प्रश्न क्षोदसहिष्णुता ॥ सौमुख्यं लोकविज्ञानं ख्यातिपूजाद्यवीक्षणम् । मिताभिधानमित्यादि गुणा धर्मोपदेष्टरि ॥ विद्वान् होना, श्रेष्ठ चारित्र धारण करना, दयालु होना, बुद्धिमान् होना, बोलने में चतुर होना, दूसरों के इशारे को समझ लेना, प्रश्नों के आक्रामक वातावरण को सहन करना, मुख अच्छा होना, लोक-व्यवहार का ज्ञाता होना, प्रसिद्धि तथा पूजा की अपेक्षा नहीं रखना और थोड़ा बोलना इत्यादि धर्मोपदेश देने वाले के गुण हैं। (383) अह पंचहिं ठाणेहिं जेहिं सिक्खा न लब्भई । थम्भा कोहा पमाणं रोगेणाऽलस्सएण य ॥ (उ. पु. 62/3-4 ) (384) अह चउदसहिं ठाणेहिं वट्टमाणे उ संजए । अविणीए वुच्चई सो उ निव्वाणं च न गच्छइ ॥ प्रमाद, इन पांच कारणों से शिक्षा प्राप्त नहीं होती है- अभिमान, क्रोध, आलस्य । (तात्पर्य यह है कि जिसने हिंसा-रूप-क्रोध आदि का त्याग नहीं किया है, वह धर्मोपदेश या शिक्षा को ग्रहण कर नहीं पाता ।) है और वह निर्वाण प्राप्त नहीं करता है: 卐卐卐 (उत्त. 11/3) 编 [ जैन संस्कृति खण्ड / 172 रोग और निम्नलिखित चौदह प्रकार से व्यवहार करने वाला संयत-मुनि अविनीत कहलाता (उत्त. 11/6) 卐卐卐卐事事事事事事事事 事 $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐 卐 卐 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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