SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ PO अहिंसा का जयघोषः रागराज्य में {379) लोकद्वयहितं मत्वा कारयामास घोषणाम्। प्राणिनो नहि हन्तव्याः कैश्चिच्चेति दयोद्यतः॥ (उ.प्र. 68/698) ___ दया में उद्यत रहने वाले रामचंद्रजी ने दोनों लोकों का हित मान कर यह घोषणा करा दी कि कोई भी मनुष्य किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करे। 0 अहिंसक वृत्तिः कुशल शिक्षक व योग्य शिष्य की पहचान $$$$弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱$$$$$$$$$第 {380) ___जस्स इमाओ जातीओ सव्वतो सुपडिलेहिताओ भवंति आघाति से णाणमणेलिसं। से किट्ट ति तेसिं समुट्ठिताणं निक्खित्तदंडाणं समाहिताणं पण्णाणमंताणं 卐 इह मुत्तिमगं। (आचा. 1/6/1 सू. 177) ___जिसे ये जीव-जातियां (समग्र-संसार) सब प्रकार से भली-भांति ज्ञात होती हैं, वही विशिष्ट ज्ञान का सम्यग् आख्यान करता है। वह (सम्बुद्ध पुरुष) इस लोक में उनके लिए मुक्ति-मार्ग का निरूपण (यथार्थ म आख्यान) करता है, जो (धर्माचरण के लिए) सम्यक् उद्यत हैं, मन-वाणी और काया से जिन्होंने दण्डरूप हिंसा का त्याग कर स्वयं को संयमित किया है, जो समाहित (एकाग्रचित्त या तप-संयम में उद्यत) हैं तथा सम्यग् ज्ञानवान् हैं। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 (381) संतिविरतिं उवसमं निव्वाणं सोयवियं अज्जवियं मद्दवियं लाघवियं अणतिवातियं सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूताणं जाव सत्ताणं अणुवीइ किट्टए धम्मं । ___(सू.कृ. 2/1/ सू. 689) (धर्मधुरन्धर) साधु शांति (समस्त क्लेशोपशमरूप) के लिए विरति (कषायों या :आस्रवों से निवृत्ति) (अथवा शान्ति-क्रोधादि कषायविजय, शांति-प्रधान विरति-प्राणातिपातादि HEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE अहिंसा-विश्वकोश।।71)
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy