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{329) धर्मो मङ्गलमुत्कृष्टमहिंसा संयमस्तपः।
(ह. पु. 18/37)
अहिंसा, संयम और तप- ये ही धर्म व मंगल हैं।
(3301
धम्मो मंगलमुक्किटु अहिंसा संजमो तवो।
(दशवै. 1/1) ..
अहिंसा, संयम व तप- ये उत्कृष्ट धर्म और मंगल रूप हैं।
FO अहिंसाः प्रशस्त गति व दीर्घ जीवन की हेतु
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(331) ताणि ठाणाणि गच्छन्ति सिक्खित्ता संजमं तवं । भिक्खाए वा गिहत्थे वा जे सन्ति परिनिव्वुडा॥
(उत्त. 5/28) भिक्षु हो या गृहस्थ, जो हिंसा आदि से निवृत्त होते हैं, वे ही संयम और तप का अभ्यास कर देव-लोकों में जाते हैं।
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{332 कहं णं भंते! जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति?
गोयमा! तिहिं ठाणेहि-नो पाणे अतिवाइत्ता, नो मुसं वदित्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएसणिजेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता, एवं खलु म जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति।
(व्या. प्र. 5/6/2) [प्र.] भगवन्! जीव दीर्घायु के कारणभूत कर्म कैसे बांधते हैं?
[उ.] गौतम! तीन कारणों से जीव दीर्घायु को कारणभूत कर्म बांधते हैं- (1) ॐ प्राणतिपात न करने से, (2) असत्य न बोलने से, और (3) तथारूप श्रमण और माहन को प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम- (रूप चतुर्विध आहार) देने से।
इस प्रकार (तीन कारणों) से जीव दीर्घायुष्क के (कारणभूत) कर्म का बन्ध करते हैं। MAHESHISHEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF
अहिंसा-विश्वकोश।।53]