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________________ {326) अहिंसैकाऽपि यत्सौख्यं कल्याणमथवा शिवम्। दत्ते तद्देहिनां नायं तपःश्रुतयमोत्करः॥ (ज्ञा. 8/46/518) यह अहिंसा अकेली ही जीवों को जो सुख, कल्याण वा अभ्युदय देती है, उसे तप, स्वाध्याय और यम-नियमादि नहीं दे सकते हैं, क्योंकि धर्म के समस्त अङ्गों में अहिंसा ही एकमात्र प्रधान है। {327 एसा सा भगवई अहिंसा जा सा भीयाण विव सरणं, पक्खीणं विव गमणं, तिसियाणं विव सलिलं, खुहियाणं विव असणं, समुद्दमज्झे व पोयवहणं, चउप्पयाणं 卐 व आसमपयं, दुहट्ठियाणं व ओसहिबलं, अडवीमज्झे व सत्थगमणं, एत्तो विसिट्ठतरिया है अहिंसा जा सा पुढवी-जल-अगणि-मारुय-वणस्सइ-बीय-हरिय-जलयर-थलयरखहयर-तस-थावर-सव्वभूय-खेमकरी। (प्रश्न. 2/1/सू.108) यह अहिंसा भगवती जो है, वह (संसार के समस्त) भयभीत प्राणियों के लिए 卐 शरणभूत है, पक्षियों के लिए आकाश में गमन करने-उड़ने के समान है, यह अहिंसा प्यास卐 से पीडित प्राणियों के लिए जल के समान है, भूखों के लिए भोजन के समान है, समुद्र के मध्य में डूबते हुए जीवों के लिए जहाज समान है, चतुष्पद-पशुओं के लिए आश्रम-स्थान 卐 के समान है, दुःखों से पीडित-रोगी जनों के लिए औषध-बल के समान है, भयानक ' ॐ जंगल में सार्थ-संघ के साथ गमन करने के समान है। (क्या भगवती अहिंसा वास्तव में है जल, अन्न, औषध, यात्रा में सार्थ (समूह) आदि के समान ही है? नहीं।)भगवती अहिंसा इनसे भी अत्यन्त विशिष्ट है, जो पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, 卐 वनस्पतिकायिक, बीज, हरितकाय, जलचर, स्थलचर, खेचर, त्रस और स्थावर सभी जीवों का क्षेम-कुशल-मंगल करने वाली है। 如听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 {328) तत्थ पढमं अहिंसा, तस-थावर-सव्वभूय-खेमकरी। (प्रश्न. 2/1/105) (संवरद्वारों में) प्रथम जो अहिंसा है, वह त्रस और स्थावर-समस्त जीवों का क्षेम# कुशल करने वाली है। * FEENEFFLESENYEYEYEYENERIFIENYEYENERAYEHEYENENEFFEYENEYENEFIF Y [जैन संस्कृति खण्ड/152
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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