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________________ (322) SHEELFIFYFFYFFYFYFFYFYEHEYESFYFFIFFEHEYENEFFYFLYEYEYENE PM हिंसानृतपरादत्तग्रहाब्रह्मपरिग्रहात् निवृत्तानां प्रमत्तानामपि सौख्यं शमात्मकम्॥ (ह. पु. 3/89) हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह- इन पांच पापों से विरत 'प्रमत्त संयत' जीवों के शान्तिरूप सुख होता है। {323) अहिंसाप्रत्यपि दृढं भजन्नो जायते रुजि। यस्त्वध्यहिंसासर्वस्वे स सर्वाः क्षिपते रुजः॥ (सा. ध. 8/82) थोड़ी-सी भी अहिंसा को दृढ़तापूर्वक पालन करने वाला उपसर्ग आदि की पीड़ा उपस्थित होने पर दुःख से अभिभूत नहीं होता, अपितु और भी तेज-युक्त हो जाता है। जो समस्त अहिंसा का स्वामी होता है, वह तो समस्त दुःखों से दूर रहता है। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听垢$$明明明明明明明明明明明明明明 {324) आयुष्मान्सुभगः श्रीमान्सुरूपः कीर्तिमानरः। अहिंसावतमाहात्म्यादेकस्मादेव जायते॥ (उपासका. 26/362) अकेले एक अहिंसा व्रत के प्रताप से ही मनुष्य चिरजीवी, सौभाग्यशाली, ऐश्वर्यवान्, सुन्दर और यशस्वी होता है। 听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 (325] हिंसादिभ्यो यथाशक्ति देशतो विरतात्मनाम्। संयतासंयतानां च महातृष्णाजयात् सुखम् ॥ (ह. पु. 3/90) ___हिंसा आदि पांच पापों से यथाशक्ति एकदेश (आंशिक रूप से) निवृत्त होने वाले 'संयतासंयत' जीवों के महातृष्णा पर विजय प्राप्त होने के कारण (आध्यात्मिक) सुख होता है। FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN अहिंसा-विश्वकोश।।51)
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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