________________
卐t
$$$
FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFM
{313) 卐 जे य अतीता जे य पडुप्पण्णा जे य आगमेस्सा अरहंता भगवंता सव्वे ते ॥ म एवमाइक्खंति, एवं भासेंति, एवं पण्णेति, एवं परूवेंति-सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता पण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा, ण परिघेतव्वा, ण परितावेयव्वा, ण उद्दवेयव्वा, एस * धम्मे णितिए सासते, समेच्च लोगं खेतन्नेहिं पवेदिते।
__ (सू.कृ. 2/1/सू. 680) ॥ _ [इसलिए (वही बात) मैं (सुधर्मास्वामी) कहता हूं-] भूतकाल में (ऋषभदेव आदि) जो भी अहंत (तीर्थंकर) हो चुके, वर्तमान में जो भी (सीमन्धरस्वामी आदि) तीर्थंकर हैं, तथा जो भी भविष्य में (पद्मनाभ आदि) होंगे; वे अभी अहँत भगवान् (परिषद् ॥ में) ऐसा ही उपदेश देते हैं। ऐसा ही भाषण करते (कहते) हैं, ऐसा ही (हेतु, दृष्टान्त, युक्ति
आदि द्वारा) बताते (प्रज्ञापन करते) हैं, और ऐसी ही प्ररूपणा करते हैं कि किसी भी प्राणी, ॐ भूत, जीव और सत्त्व की हिंसा नहीं करनी चाहिए, न ही बलात् उनसे आज्ञा-पालन कराना 卐 चाहिए, न उन्हें बलात् दास-दासी आदि के रूप में पकड़ कर या खरीद कर रखना चाहिए,
न उन्हें परिताप (पीड़ा) देना चाहिए, और न उन्हें उद्विग्न (भयभीत या हैरान) करना
चाहिए। यही धर्म ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत (सदैव स्थिर रहने वाला) है। समस्त लोक को म केवल ज्ञान' के प्रकाश में जान कर जीवों के खेद (पीड़ा) को या क्षेत्र को जानने वाले श्री म तीर्थंकरों ने इस धर्म का प्रतिपादन किया है।
明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明那
{314} अविहिंसामेव पव्वए अणुधम्मो मुणिणा पवेइओ॥
(सू.कृ. 1/2/1/14) अहिंसा में प्रव्रजन कर। महावीर के द्वारा प्रवेदित अहिंसा धर्म अनुधर्म है- पूर्ववर्ती - ऋषभ आदि सभी तीर्थंकरों द्वारा प्रवेदित है।
(315)
明明明明明明明明明明明明明
__अर्हता भगवता प्रोक्त परमागमे प्रतिषिद्धः प्राणिवधः, सर्वत्र हिंसा-विरतिः श्रेयसीति।
(रा.वा. 8/1/15) ___ भगवान्-अर्हन्त (तीर्थंकर) देव द्वारा उपदिष्ट परमागम (द्वादशाङ्ग) में प्राणि-वध का निषेध किया गया है। अतः सर्वत्र हिंसा से विरत होना, अहिंसा का पालन करना ही श्रेयस्कर है।
HEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/146