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________________ LELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELEUEUEUELEUEUEDEUEUEUE :תכתפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיביבי {311 卐卐卐卐卐 से बेमि- जे य अतीता जे य पडुप्पण्णा जे य आगमिस्सा अरहंता भगवंता' ते सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति-सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेतव्वा, ण परिघेत्तव्वा, ण परितावेयव्वा, ण उद्दवेयव्वा।। एस धम्मे सुद्धे णितिए सासए समेच्च लोयं खेतण्णेहिं पवेदिते । तं जहाॐ उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा, उवट्ठिएसु वा अणुवट्ठिएसु वा, उवरतदंडेसु वा अणुवरतदंडेसु वा सोवधिएसु वा अणुवहिएसु वा, संजोगरएसु वा असंजोगरएसु वा। (आचा. 1/4/1 सू. 132) मैं कहता हूं-जो अर्हन्त भगवान् अतीत में हुए हैं, जो वर्तमान में है और जो भविष्य में होंगे, वे सब ऐसा आख्यान (कथन) करते हैं, ऐसा (परिषद् में) भाषण करते ॥ हैं, (शिष्यों का संशय-निवारण करने हेतु-) ऐसा प्रज्ञापन करते हैं, (तात्त्विक दृष्टि से-) ऐसा प्ररूपण करते हैं-समस्त प्राणियों, सर्व भूतों, सभी जीवों और सभी सत्त्वों का (डंडे म आदि से) हनन नहीं करना चाहिए, बलात् उन्हें शासित नहीं करना चाहिए, न उन्हें दास 卐 बनाना चाहिए, न उन्हें परिताप देना चाहिए और न उनके प्राणों का विनाश करना चाहिए।' यह अहिंसा धर्म शुद्ध, नित्य और शाश्वत है। खेदज्ञ अर्हन्तों ने (जीव-)लोक को सम्यक् प्रकार से जानकर इसका प्रतिपादन किया है। (अर्हन्तों ने इस धर्म का उन सबके लिए प्रतिपादन किया है), जैसे कि- जो ॐ धर्माचरण के लिए उठे हैं अथवा अभी नहीं उठे हैं। जो धर्मश्रवण के लिए उपस्थित हुए हैं, भी या नहीं हुए है, जो (जीवों को मानसिक, वाचिक और कायिक)दण्ड देने से उपरत हैं । अथवा अनुपरत हैं, जो (परिग्रहरूप) उपधि से युक्त हैं, अथवा उपधि-रहित हैं, जो संयोगों (ममत्व सम्बन्धों) में रत हैं, अथवा संयोगों में रत नहीं है। {3121 म सव्वेसु णं महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पण्णवयंति, तंज 卐 जहा- सव्वाओ पाणातिवायाओ वेरमणं, जाव [सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं], सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं। ____ (ठा. 4/1/137) सभी महाविदेह क्षेत्रों में अर्हन्त भगवन्त चातुर्याम धर्म का उपदेश देते हैं, जैसे1. सर्व प्राणातिपात से विरमण। 2. सर्व मृषावाद से विरमण। 2. सर्व अदत्तादान से विरमण। 3. सर्व बाह्य-आदान से विरमण। THEFFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEFFEET अहिंसा-विश्वकोश।1451
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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