SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ LOUEUEUEUEUEUEUEUEUELELELELELELELELELELELELELELELELELELEDEL 1 GPAPPIPAPADAPPPPPPPOORDPDADPOADPORDPROPOPOIDAPORDPROPOP 明明明明明明明明明明 {308) सव्वपाणभूयजीवसत्ताणं समारभमाणस्स पंचविहे असंजमे कजति, तं जहाएगिदियअसंजमे, (बेइंदियअसंजमे, तेइंदियअसंजमे, चउरिदियअसंजमे), पंचिंदिय संजमे। (ठा. 5/2/145) सभी प्राणी, भूत, जीव और सत्वों का घात करने वाले को पांच प्रकार असंयम होता है।जैसे- 1. एकेन्द्रिय-असंयम, 2. द्वीन्द्रिय असंयम, 3. त्रीन्द्रिय-असंयम, 4. चतुरिन्द्रियअसंयम, और 5. पंचेन्द्रिय असंयम। 20 अहिंसाः सर्वज्ञ तीर्थकर-उपदिष्ट प्रमुख धर्म 卐卐''''' {309) अहिंसालक्षणस्तदागमदेशितो धर्मः। (सर्वा. 6/13/634) सर्वज्ञ-द्वारा प्रतिपादित आगम में उपदिष्ट अहिंसा ही 'धर्म' है। 如明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明那 {310 भरहेरवएसुणं वासेसु पुरिम-पच्छिम-वजा मज्झिमगा बावीसं अरहंता भगवंतो ॐ चाउज्जामं धम्मं पण्णवेंति, तं जहा- सव्वाओ पाणातिवायाओ वेरमणं, एवं सव्वाओ卐 ॐ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं। (ठा. 4/1/136) - भरत और ऐरावत क्षेत्र में प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर को छोड़ कर मध्यवर्ती बाईस अर्हन्त भगवन्तों ने चातुर्याम धर्म का उपदेश दिया है। जैसे 1.सर्व प्राणातिपात (हिंसा-कर्म) से विरमण। 2. सर्व मृषावाद (असत्य-भाषण) से विरमण। 3. सर्व अदत्तादान (चौर्य-कर्म) से विरमण। 4. सर्व बाह्य (वस्तुओं के) आदान से विरमण । '''' ALELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELEUCLELFI जैन संस्कृति खण्ड//44
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy