SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 编 編編筑 निंदा करता है, उसे झिड़कता है, या घृणा करता है, गर्हा करता है, दूसरे को नीचा दिखाता (पराभव करता) है, उसका अपमान करता है । ( वह समझता है - ) यह व्यक्ति हीन (योग्यता, गुण आदि में मुझ से न्यून) है, मैं विशिष्ट जाति, कुल, बल आदि गुणों से सम्पन्न कहूं, इस प्रकार अपने आपको उत्कृष्ट मानता हुआ गर्व करता है । इस प्रकार जाति आदि मदों से उन्मत्त पुरुष आयुष्य पूर्ण होने पर शरीर को (यहीं) छोड़ कर कर्ममात्र को साथ ले कर विवशतापूर्वक परलोक प्रयाण करता है। वहां वह एक गर्भ से दूसरे गर्भ को, एक जन्म से दूसरे जन्म को, एक मरण से दूसरे मरण को और एक नरक से दूसरे नरक को प्राप्त करता रहता है। परलोक में वह चंड (भयंकर, क्रोधी, अतिरौद्र), नम्रतारहित, चपल और अतिमानी होता है। इस प्रकार वह व्यक्ति उक्त अभिमान (मद) की क्रिया के कारण सावद्यकर्मबंध करता है। यह नौवां क्रियास्थान मानप्रत्ययिक कहा गया है 1 筆 編編 (298) 卐 अहावरे दसमे किरियाठाणे मित्तदोसवत्तिए त्ति आहिज्जति, से हाणाम केइ पुरसे मातीहिं वा पितीहिं वा भाईहिं वा भगिणीहिं वा भज्जाहिं वा पुत्तेहिं वा धूयाहिं वा सुहाहिं वा सद्धिं संवसमाणे तेसिं अन्नतरंसि अहालहुगंसि अवराहंसि सयमेव गरुयं दंडं वत्तेति, तंजहा- सीतोदग-वियडंसि वा कायं ओबोलित्ता भवति, उसिणोदगवियडेण वा कार्य ओसिंचित्ता भवति, अगाणिकाएण वा कार्य उड्डहित्ता 馬 भवति, जोत्तेण वा वेत्तेण वा णेत्तेण वा तया वा कसेण वा छिवाए वा लयाए वा पासाइं उद्दालेत्ता भवति, दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलूण वा कवालेण वा कायं आउट्टित्ता भवति; तहप्पकारे पुरिसजाते संवसमाणे दुम्मणा भवंति, पवसमाणे सुमणा भवंति, तहप्पकारे पुरिसजाते दंडपासी दंडगुरुए दंडपुरक्खडे अहिए इमंसि लोगंसि अहिते परंसि लोगंसि संजलणे कोहणे पिट्ठिमंसि यावि भवति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जे ति आहिज्जति, दसमे किरियाठाणे मित्तिदोसवत्तिए त्ति आहिते । 卐 (सू.कृ. 2/2/ सू. 704 ) दसवां क्रियास्थान मित्र दोषप्रत्ययिक कहलाता है । जैसे- कोई (प्रभुत्व संपन्न) 卐 卐 पुरुष, माता, पिता, भाइयों, बहनों, पत्नी, कन्याओं, पुत्रों अथवा पुत्रवधुओं के साथ निवास क करता हुआ, इनसे कोई छोटा-सा भी अपराध हो जाने पर स्वयं भारी दंड देता है, उदाहरणार्थसर्दी के दिनों में अत्यन्त ठंडे पानी में उन्हें डुबोता है; गर्मी के दिनों में उनके शरीर पर 編卐 ! 编 अहिंसा - विश्वकोश। 137) $$$$$$$ 5 馬 卐 馬
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy