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________________ 明明明明明明明明明 ॐ अत्यन्त गर्म (उबलता हुआ) पानी छींटता है, आग से उनके शरीर को जला देता है या गर्म की दाग देता है, तथा जोत्र से, बेंत से, छड़ी से, चमड़े से, लता से या चाबुक से अथवा किसी प्रकार की रस्सी से प्रहार करके उसके बगल (पार्श्वभाग) की चमड़ी उधेड़ देता है, तथैव 卐 डंडे से, हड्डी से, मुक्के से, ढेले से,ठीकरे या खप्पर से मार-मार कर उसके शरीर को 卐 卐 ढीला (जर्जर) कर देता है। ऐसे (अतिक्रोधी) पुरुष के घर पर रहने से उसके सहवासी पारिवारिकजन दुःखी रहते हैं, ऐसे पुरुष के परदेश प्रवास करने से वे सुखी रहते हैं। इस प्रकार का व्यक्ति जो (हरदम) डंडा बगल में दबाये रखता है, जरा से अपराध पर भारी दंड 卐 देता है, हर बात में दंड को आगे रखता है अथवा दंड को आगे रख कर बात करता है, वह 卐 इस लोक में तो अपना अहित करता ही है, परलोक में भी अपना अहित करता है। वह प्रतिक्षण ईर्ष्या से जलता रहता है, बात-बात में क्रोध करता है, दूसरों की पीठ पीछे निन्दा करता है, या चुगली खाता है। इस प्रकार के (महादंडप्रवर्तक) व्यक्ति को हितैषी (मित्र) 卐 व्यक्तियों को महादंड देने की क्रिया के निमित्त से पापकर्म का बंध होता है। इसी कारण इस ॐ दसवें क्रियास्थान को 'मित्रदोष-प्रत्ययिक' कहा गया है। (299) अहावरे एक्कारसमे किरियाठाणे मायावत्तिए त्ति आहिजत्ति, जे इमे भवंतिगूढायारा तमोकासिया उलूगपत्तलहुया, पव्वयगुरुया, ते आरिया वि संता अणारियाओ ॥ भासाओ विउज्जंति, अन्नहा संतं अप्पाणं अन्नहा मन्नंति अन्नं पुट्ठा अन्नं वागरेंति, अन्नई आइक्खियव्वं अन्नं आइक्खंति। से जहाणामए केइ पुरिसे अंतोसल्ले तं सल्लं णो सयं पणीहरति, णो अन्नेण णीहरावेति, णो पडिवद्धंसेति, एवामेव निण्हवेति, अविउट्टमाणे 卐 अंतो अंतो रियाति, एवामेव माई मायं कटु णो आलोएति णो पडिक्कमति णो 卐णिंदति णो गरहति णो विउदृति णो विसोहति णो अकरणयाए अब्भुट्ठति णो अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवजति, मायी अस्सं लोए पच्चायाइ, मायी परंसि लोए पच्चायाति, निंदं गहाय पसंसते, णिच्चरति, ण नियट्टति, णिसिरिय दंडं छाएति, मायी असमाहडसुहलेसे यावि भवति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजे त्ति आहिजइ, एक्कारसमे किरियाठाणे मायावत्तिए त्ति आहिते। (सू.कृ. 2/2/ सू. 705) ग्यारहवां क्रियास्थान है, जिसे मायाप्रत्ययिक कहते हैं। ऐसे व्यक्ति, जो किसी को * पता न चल सके, ऐसे गूढ आचार (आचरण) वाले होते हैं, लोगों को अंधेरे में रख कर 听听听听听听听听听听听听听垢妮妮 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听那 野野野野野野野野! PAHhhhhhhSSAGAR LELEUELELELELCLCLCLCLELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELE MA [जैन संस्कृति खण्ड/138
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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