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________________ HTTE F FESTEFFEng (2961 म अहावरे अट्ठमे किरियाठाणे अज्झथिए त्ति आहिज्जति। से जहाणामए केइज पुरिसे, से णत्थि णं किंचि विसंवादेति, सयमेव हीणे दीणे दुढे दुम्मणे ओहयमणसंकप्पे चिंतासोगसागर-संपविढे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगते भूमिगतदिट्ठीए झियाति, तस्स णं अज्झत्थिया असंसइया चत्तारि ठाणा एवमाहिजंति, तं.-कोहे माणे 卐 माया लोभे, अज्झत्थमेव कोह-माण-माया-लोहा, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजे " जति आहिज्जति, अट्ठमे किरियाठाणे अज्झथिए त्ति आहिते। (सू.कृ. 2/2/ सू. 702) आठवां अध्यात्मप्रत्ययिक क्रियास्थान कहा गया है। जैसे कोई ऐसा (चिन्ता एवं * भ्रम से ग्रस्त) पुरुष है, किसी विसंवाद (तिरस्कार या क्लेश) के कारण, दुःख उत्पन्न करने वाला कोई दूसरा नहीं है, फिर भी वह स्वयमेव हीन-भावनाग्रस्त, दीन, दुश्चिन्त (दुःखित चित्त) दुर्मनस्क, उदास होकर मन में अस्वस्थ (बुरा) संकल्प करता रहता है, चिंता और 卐शोक के सागर में डूबा रहता है, एवं हथेली पर मुंह रख कर (उदासीन मुद्रा में) पृथ्वी पर ॐ दृष्टि किए हुए आर्तध्यान करता रहता है। निःसंदेह उसके हृदय में संचित चार कारण हैं क्रोध, मान, माया और लोभ । वस्तुतः क्रोध, मान, माया और लोभ (आत्मा-अन्त:करण में ॐ उत्पन्न होने के कारण) आध्यात्मिक भाव हैं। उस प्रकार अध्यात्मभाव के कारण सावद्यकर्म का बंध होता है। अत: आठवें क्रियास्थान को 'अध्यात्मप्रत्ययिक' कहा गया है। 明明明明明明明明明 12971 听听听听听听听听听听听听听听听听 __ अहावरे णवमे किरियाठाणे माणवत्तिए त्ति आहिजई। से जहाणामए केइ卐 पुरिसे जातिमदेण वा कुलमदेण वा बलमदेण वा रूवमएण वा तवमएण वा सुयमदेण वा लाभमदेण वा इस्सरियमदेण वा पण्णामदेण वा अन्नतरेण वा मदट्ठाणेणं मत्ते समाणे परं हीलेति निंदति खिंसति गरहति परिभवइ अवमण्णेति, इत्तरिए अयमंसि 卐 अप्पाणं समुक्कसे, देहा चुए कम्मबितिए अवसे पयाति, तंजहा गब्भातो गम्भं, जम्मातो जम्मं, मारातो मारं, णरगाओ णरगं, चंडे थद्धे चवले माणी यावि भवति, एवं खु तस्स तप्पत्तियं सावजे त्ति आहिजति, णवमे किरियाठाणे माणवत्तिए त्ति आहिते ___ (सू.कृ. 2/2/ सू. 703)卐 नौवां क्रियास्थान मानप्रत्ययिक कहा गया है। जैसे कोई व्यक्ति जातिमद, कुलमद, रूपमद, तपोमद, श्रुत (शास्त्रज्ञान) मद, लाभमद, ऐश्वर्यमद एवं प्रज्ञामद, इन आठ मदस्थानों 卐 में से किसी एक मद-स्थान से मत्त हो कर दूसरे व्यक्ति की अवहेलना (अवज्ञा) करता है, EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET [जैन संस्कृति खण्ड/136 R
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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