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THEHENSE Oहिंसा का कुफलः नरक आदि दुर्गति एवं अशुभ दीर्घायु की प्राप्ति
12591 हिंसायामनृते चौर्यामब्रह्मणि परिग्रहे। दृष्टा विपत्तिरत्रैव परत्रैव च दुर्गतिः॥
(उपासका. 26/317) हिंसा करने, झूठ बोलने, चोरी करने, कुशील सेवन करने और परिग्रह का संचय करने से इसी लोक में मुसीबत आती देखी जाती है और परलोक में भी दुर्गति होती है।
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अणुबद्धवेररोई असुरेसूववजदे जीवो ।
(मूला. 2/68) ____ जो वैर को बांधने में रुचि रखता है, वह जीव असुर जाति के (निम्न कोटि के) देव 卐 में उत्पन्न होता है।
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हिंसे बाले मुसावाई अद्धाणंमि विलोवए। अन्नदत्तहरे तेणे माई कण्हुहरे सढे ॥ इत्थीविसयगिद्धे य महारंभ-परिग्गहे। भुंजमाणे सुरं मंसं परिवूढे परंदमे ॥ अयकक्कर-भोई य तुंदिल्ले चियलोहिए। आउयं नरए कंखे जहाएसं व एलए॥
(उत्त. 7/5-7) ____ हिंसक, अज्ञानी, मिथ्याभाषी, मार्ग लूटने वाला बटमार, दूसरों को दी हुई वस्तु को बीच में ही हड़प जाने वाला, चोर, मायावी, ठग, कुतोहर-अर्थात् कहां से चुराऊं-इसी विकल्पना में निरन्तर लगा रहने वाला, धूर्त, स्त्री और अन्य विषयों में आसक्त, महाआरम्भ
और महापरिग्रह वाला, सुरा और मांस का उपभोग करने वाला, बलवान् , दूसरों को सताने " वाला, बकरे की तरह कर-कर शब्द करते हुए मांसादि अभक्ष्य खाने वाला, मोटी तोंद और अधिक रक्त वाला व्यक्ति उसी प्रकार नरक के आयुष्य की आकांक्षा करता है, जैसे कि मेमना मेहमान की प्रतीक्षा करता है।
FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET [जैन संस्कृति खण्ड/118
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