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________________ .FI.FIRLEDELCLCLCLCLCLCLELELELELCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLELELELE ॐO हिंसा का दुष्परिणामः अल्पायुता (257} ___ तिहिं ठाणेहिं जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा- पाणे अतिवातित्ता : भवति, मुसं वइत्ता भवति, तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिजेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवति- इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा 卐अप्पाउयत्ताए कम्मं पगरेंति। (ठा. 3/1/17) तीन प्रकार से जीव अल्पआयुष्य कर्म का बन्ध करते हैं- प्राणों का अतिपात (घात) करने से, मृषावाद बोलने से और तथारूप श्रमण महान को अप्रासुक, अनेषणीय अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य आहार का प्रतिलाभ (दान) करने से। इन तीन प्रकारों से जीव ॐ अल्प आयुष्य कर्म का बन्ध करते हैं। 听听听听听 {258} कहं णं भंते! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं परकेंति? गोतमा! तिहिं ठाणेहिं, तं जहा- पाणे अइवाएत्ता, मुसं वइत्ता, तहारूवं ॥ समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता, एवं जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति। (व्या. प्र. 5/6/1) [प्र.] भगवन्! जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म किस प्रकार से बांधते हैं? _[उ.] गौतम! तीन कारणों से जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म बांधते हैं- (1) म प्राणियों की हिंसा करके, (2) असत्य भाषण करके, और (3) तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक, अनेषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम- (रूप चतुर्विध आहार) दे (प्रतिलाभित) कर। इस प्रकार (तीन कारणों से) जीव अल्पायुष्यकफल वाले (कम जीने 卐का कारणभूत) कर्म बांधते हैं। 明明能 LEUELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELE अहिंसा-विश्वकोश।।17]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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