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________________ FFFFFFFFFFFFFFFFFa {262} तओ आउपरिक्खीणे चुया देहा विहिंसगा। आसुरियं दिसं बाला गच्छन्ति अवसा तमं॥ (उत्त. 7/10) नाना प्रकार से हिंसा करने वाले अज्ञानी जीव आयु के क्षीण होने पर जब शरीर के छोड़ते हैं तो वे कृत कर्मों से विवश अंधकाराच्छन्न नरक की ओर जाते हैं। 卐卐卐卐卐卐卐卐 (263} हिंसैव नरकागारप्रतोली प्रांशुविग्रहा। कुठारीव द्विधा कर्तुं भेत्तुं शूलाऽतिनिर्दया॥ (ज्ञा. 8/12/484) यह हिंसा ही नरकरूपी घर में प्रवेश करने के लिए प्रतोली (मुख्य दरवाजा) है ॐ तथा जीवों को काटने के लिये कुठार (कुल्हाड़ा) और विदारने के लिये निर्दय शूली है। (264) 如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 हिंसैव नरकं घोरं हिंसैव गहनं तमः॥ (ज्ञा. 8/18/490) 卐卐卐 हिंसा ही घोर नरक और महा अन्धकार है। (265) हिंसैव दुर्गतेारं हिंसैव दुरितार्णवः। (ज्ञा. 8/18/490) हिंसा ही दुर्गति का द्वार है, हिंसा ही पाप का समुद्र है। अर्थात् हिंसक को निश्चित ही ॐ दुर्गति प्राप्त होती है और उसे प्राप्त होने वाले पाप एक समुद्र की तरह दुस्तर होते हैं। 卐'''卐 अहिंसा-विश्वकोश||19
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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