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________________ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐, (226) तपोयमसमाधीनां ध्यानाध्ययनकर्मणाम् । तनोत्यविरतं पीडां हृदि हिंसा क्षणस्थिता ॥ हृदय में क्षणभर भी स्थान पाई हुई यह हिंसा तप, यम, समाधि और ध्यानाध्ययनादि कार्यों को निरंतर पीड़ा देती है अर्थात् उन्हें नष्ट कर देती है। (227) निःस्पृहत्त्वं महत्त्वं च नैराश्यं दुष्करं तपः । कायक्लेशश्च दानं च हिंसकानामपार्थकम् ॥ नष्ट हो जाता है। जो हिंसक पुरुष है उनकी नि:स्पृहता, महत्ता, आशारहितता, दुष्कर तप करना, कायक्लेश और दान करना आदि समस्त धर्म-कार्य व्यर्थ हैं अर्थात् निष्फल हैं। (228) (ज्ञा. 8/14/486) क्षमादिपरमोदारैर्यमैर्यो वर्द्धितश्चिरम् । हन्यते स क्षणादेव हिंसया धर्मपादपः ॥ (ज्ञा. 8/19/491) (229) निस्त्रिंश एव निस्त्रिशं यस्य चेतोऽस्ति जन्तुषु । तपः श्रुताद्यनुष्ठानं तस्य क्लेशाय केवलम् ॥ का करने में दीर्घ काल व्यतीत हो जाता है, वह धर्म - वृक्ष इसी हिंसारूप कुठार से क्षणमात्र में (ज्ञा. 8 /13/485) उत्तम क्षमादिक परम उदार संयमों के आधार पर जिस धर्म-रूप वृक्ष को समृद्ध 编 [ जैन संस्कृति खण्ड /102 $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ (ज्ञा. 8 /43/415) 卐 जिस पुरुष का चित्त जीवों के लिये शस्त्र के समान निर्दय है, उसका तप करना 卐卐卐卐卐卐卐卐事事事事事事事事卐” 卐 और शास्त्र का पढ़ना आदि कार्य केवल कष्ट के लिये ही होता है । अर्थात् वह सब निरर्थक होता है। 卐 筑 驹$$$$$$$$$衆 卐 馬 馬
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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