________________
EFFFFFFFFFFFFFFFFFFESTHAN
(223) कूराणि कम्माणि बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेति, 卐 卐 मोहेण गब्भं मरणाइ एति । एत्थ मोहे पुणो पुणो।
(आचा. 1/5/1 सू. 148) (अज्ञान के कारण) वह बाल-अज्ञानी (कामना के वश हुआ) हिंसादि क्रूर कर्म ॥ उत्कृष्ट रूप से करता हुआ (दुःख को उत्पन्न करता है।) तथा उसी दुःख से उद्विग्न होकर वह । मूढ़ विपरीत दशा (सुख के स्थान पर दुःख) को प्राप्त होता है। उस मोह (मिथ्यात्व
कषाय-विषय-कामना) से (उद्भ्रान्त होकर कर्मबन्धन करता है, जिसके फलस्वरूप) 卐 बार-बार गर्भ में आता है, जन्म-मरणादि पाता है। इस (जन्म-मरण की परम्परा) में 卐
(मिथ्यात्वादि के कारण) उसे बारम्बार मोह (व्याकुलता) उत्पन्न होता है।
(224)
明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听
जइ मज्झ कारणा एए हम्मिहिंति बहू जिया। न मे एयं तु निस्सेसं परलोगे भविस्सई॥
(उत्त. 22/19) (विवाह में वध-हेतु संगृहीत पशुओं को देखकर अरिष्टनेमि का विचार-मन्थन-) "यदि मेरे निमित्त से इन बहुत से प्राणियों का वध होता है, तो यह परलोक में मेरे लिए - श्रेयस्कर नहीं होगा।"
如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
{225]
वश्याकर्षणविद्वेषं मारणोच्चाटनं तथा। इत्यादिविक्रियाकर्मरञ्जितैर्दुष्टचेष्टितैः । आत्मानमपि न ज्ञातुं नष्टं लोकद्वयं च तैः॥
(ज्ञा. 4/50-53/341,344) वशीकरण, आकर्षण, विद्वेषण, मारण, उच्चाटन इत्यादि विकृत कार्यों में अनुरक्त होकर दुष्ट चेष्टा करने वाले जो पुरुष हैं, उन्होंने आत्मज्ञान से हाथ धो लिया है और अपने
दोनों लोकों का कार्य भी नष्ट किया है- ऐसे पुरुषों को न तो कभी आत्म-ज्ञान हो सकता है । 卐 और इस लोक व परलोक में भी हित-सिद्धि नहीं होती है।
卐
अहिंसा-विश्वकोश/1011