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________________ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 编卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐编编卐 (180) जीवहिंसादिसंकल्पैरात्मन्यपि हि दूषिते । पापं भवति जीवस्य न परं परपीडनात् ॥ जब भी मन में जीव-हिंसा का संकल्प आया और आत्मा में कालुष्य / दोष आया, तभी जीव को 'पाप' लग जाता है, न कि प्राणिघात होने के बाद | (181) संकल्पाच्छालिमत्स्योऽपि स्वयंभूरमणार्णवे । महामत्स्याशुभेन स्वं नियोज्य नरकं गतः ॥ (पद्म. पं. (182) एकस्य सैव तीव्रं दिशति फलं सैव मन्दमन्यस्य । व्रजति सहकारिणोरपि हिंसा वैचित्र्यमत्र फलकाले ॥ 6/41) देखो, स्वयंभूरमणसमुद्र में शालिमत्स्य महामत्स्य के परिणामों से अपने परिणाम मिला कर नरक को गया । दूसरे को वही हिंसा मन्दफल देती है। (ज्ञा. 8 /45/517) [ अन्य कोई हिंसा करे और कोई उसका अनुमोदन करे तो दोनों को समान पाप होने का यह उदाहरण है ।] $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$咿 编 [ जैन संस्कृति खण्ड /78 इसी तरह एक साथ मिल कर की हुई हिंसा भी, फल देने के समय में उदयकाल में ( पुरु. 4/17/53) इस विचित्रता को प्राप्त होती है कि किसी एक को वही हिंसा तीव्र फल देती है और किसी 卐卐卐卐卐编编编卐” 節 筑 卐 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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