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________________ AREEKAAREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEng {196} कर्मणा मनसा वाचा परपीडां न कुर्वते। अपरिग्रहशीलाच, ते वै भागवतोत्तमाः॥ ____ (स्कं.पु. वैष्णव./वेंकटा./21/41; ना. पु. 1/5/51) कर्म, मन व वचन से जो किसी भी प्राणी को पीड़ित नहीं करते, और जो परिग्रह है भी नहीं रखते, वे ही उत्तम 'भागवत' (भगवद्भक्त) हैं। {197} बहुधा बाध्यमानोऽपि यो नरः क्षमयान्वितः। तमुत्तमं नरं प्राहुर्विष्णोः प्रियतरं सदा॥ (ना. पु. 1/37/34) जो व्यक्ति अनेक प्रकारों से बाधित/पीड़ित होने पर भी, (पीड़ा देने वाले पर) क्षमा भाव रखता है, उसे विष्णु का प्रिय (भक्त) और श्रेष्ठ पुरुष कहा जाता है। {198} F片片垢玩垢玩垢状听听听听听听听听听听听垢玩垢听听听听听玩乐乐垢坎坎坎听听听听听听听听听听听听 अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यापरिग्रहौ। वर्तते यस्य तस्यैव तुष्यते जगतां पतिः। सर्वभूतदयायुक्तो विप्रपूजापरायणः। तस्य तुष्टो जगन्नाथो मधुकैटममईनः॥ (ना. पु. 1/34/20-21) अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह- इन्हें जो व्यक्ति पालन करता है, जगदीश्वर उसी से सन्तुष्ट रहते हैं। जो व्यक्ति सभी प्राणियों के प्रति दयाभाव रखता हुआ म विप्रों की पूजा में तत्पर रहता है, उससे मधुकैटभ-संहारक जगन्नाथ भगवान् प्रसन्न रहते हैं। {199} सर्वभूतदयावन्तः सर्वभूतहिते रताः। सदा गायन्ति देवेशम्, एतान् भक्तान् अवेहि वै॥ (स्कं.पु. वैष्णव./वेंकटा./6/58) जो सभी प्राणियों के प्रति दयालु हैं, सबके कल्याण में संलग्न हैं, भगवान का सदा कीर्तन करते हैं- निश्चय उन्हें ही (ईश्वर का) भक्त समझो। 听听听听听听听听听听听听听听明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 兵兵兵兵兵兵兵兵兵乐乐乐乐玩玩玩玩玩玩乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐民乐部 वैदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/64
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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