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विमलमतिरमत्सरः प्रशान्तश्शुचिचरितोऽखिलसत्त्वमित्रभूतः । प्रियहितवचनोऽस्तमानमायो वसति सदा हृदि तस्य वासुदेवः ॥
(fa.g. 3/7/24)
जो व्यक्ति निर्मल-चित्त, मात्सर्यरहित, प्रशान्त, शुद्ध - चरित्र, समस्त जीवों का सुहृद्, प्रिय और हितवादी तथा अभिमान व मायासे रहित होता है, उसके हृदय में भगवान् वासुदेव सर्वदा विराजमान रहते हैं ।
{193}
क्षमां कुर्वन्ति क्रुद्धेषु दयां मूर्खेषु मानवाः । मुदञ्च धर्मशीलेषु गोविन्दे हृदयस्थिते ॥
(ग.पु. 1/222/27) जिसके हृदय में भगवान् गोविन्द स्थित होते हैं, वे लोग क्रोधी व्यक्तियों को क्षमा करते हैं और मूर्ख/अज्ञानी लोगों के प्रति दया भाव रखते हैं।
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न चलति निजवर्णधर्मतो यः सममतिरात्मसुहृद्विपक्षपक्षे । न हरति न च हन्ति किञ्चिदुच्चैः सितमनसं तमवेहि विष्णुभक्तम् ॥
(fa.g. 3/7/20)
जो पुरुष अपने वर्ण-धर्म से विचलित नहीं होता, अपने सुहृद् और विपक्षियों के प्रति समान भाव रखता है, किसी का द्रव्य हरण नहीं करता तथा किसी की हिंसा नहीं करता, उस अत्यन्त रागादि-शून्य और निर्मलचित्त व्यक्ति को ही भगवान् विष्णु का भक्त जानो ।
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अहिंसा सत्यवचनं दया भूतेष्वनुग्रहम् । यस्यैतानि सदा राम तस्य तुष्यति केशवः ॥
(fa. u. J. 1/58/1)
भगवान शंकर का श्री परशुराम को कथन - ) हे परशुराम ! अहिंसा, सत्य - भाषण, दया तथा प्राणियों पर अनुग्रह - दृष्टि- ये जिसके द्वारा पालन किये जा रहे हों, उस व्यक्ति पर भगवान् विष्णु प्रसन्न रहते हैं ।
出
अहिंसा कोश / 63]