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________________ 原廠線 1 {192} विमलमतिरमत्सरः प्रशान्तश्शुचिचरितोऽखिलसत्त्वमित्रभूतः । प्रियहितवचनोऽस्तमानमायो वसति सदा हृदि तस्य वासुदेवः ॥ (fa.g. 3/7/24) जो व्यक्ति निर्मल-चित्त, मात्सर्यरहित, प्रशान्त, शुद्ध - चरित्र, समस्त जीवों का सुहृद्, प्रिय और हितवादी तथा अभिमान व मायासे रहित होता है, उसके हृदय में भगवान् वासुदेव सर्वदा विराजमान रहते हैं । {193} क्षमां कुर्वन्ति क्रुद्धेषु दयां मूर्खेषु मानवाः । मुदञ्च धर्मशीलेषु गोविन्दे हृदयस्थिते ॥ (ग.पु. 1/222/27) जिसके हृदय में भगवान् गोविन्द स्थित होते हैं, वे लोग क्रोधी व्यक्तियों को क्षमा करते हैं और मूर्ख/अज्ञानी लोगों के प्रति दया भाव रखते हैं। {194} न चलति निजवर्णधर्मतो यः सममतिरात्मसुहृद्विपक्षपक्षे । न हरति न च हन्ति किञ्चिदुच्चैः सितमनसं तमवेहि विष्णुभक्तम् ॥ (fa.g. 3/7/20) जो पुरुष अपने वर्ण-धर्म से विचलित नहीं होता, अपने सुहृद् और विपक्षियों के प्रति समान भाव रखता है, किसी का द्रव्य हरण नहीं करता तथा किसी की हिंसा नहीं करता, उस अत्यन्त रागादि-शून्य और निर्मलचित्त व्यक्ति को ही भगवान् विष्णु का भक्त जानो । {195} अहिंसा सत्यवचनं दया भूतेष्वनुग्रहम् । यस्यैतानि सदा राम तस्य तुष्यति केशवः ॥ (fa. u. J. 1/58/1) भगवान शंकर का श्री परशुराम को कथन - ) हे परशुराम ! अहिंसा, सत्य - भाषण, दया तथा प्राणियों पर अनुग्रह - दृष्टि- ये जिसके द्वारा पालन किये जा रहे हों, उस व्यक्ति पर भगवान् विष्णु प्रसन्न रहते हैं । 出 अहिंसा कोश / 63]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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