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________________ 他%% % %%%% %% % %%%% %% % % % %%%%%% % {185} धर्मस्त्रिपाच्च त्रेतायां द्विपाच्च द्वापरे स्मृतः। कलौ प्रवृत्ते पादात्मा, सर्वलोपस्ततः परम्॥ ___(ब्र.वै. 2/7/69) अहिंसा आदि धर्म त्रेतायुग में तीन पैरों से, द्वापर में दो पैरों से और कलियुग में एक म पैर से रहता है, अन्त में समस्त धर्म लुप्त हो जाता है। {186} हिंसकाश्च दयाहीनाः पौराश्च नरघातिनः। हरेर्नाम्नां विक्रयिणो भविष्यन्ति कलौ युगे॥ (दे. भा. 9/8/35,40) भावी कलियुग में प्रायः लोग मनुष्यघाती, हिंसक, दयाहीन, तथा ईश्वर (हरि) के नाम को बेचने वाले (अर्थात् धर्म को व्यापार बनाने वाले) होंगे। {187} 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听纸听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 शठाः क्रूरा दाम्भिकाच, महाहंकारसंयुताः। चौराश्च हिंसकाः सर्वे भविष्यन्ति ततः परम्॥ (ब्र.वै. 2/7/18) कलियुग में मनुष्य शठ, क्रूर, दम्भी (पाखण्डी), अहंकारी, चोर व हिंसक होंगें। RS55555555555555555555555555 अहिंसाः ईश्वरीय स्वरूप {188} धर्मो यज्ञस्तपः सत्यमहिंसा शौचमार्जवम्। क्षमा दानं दया लक्ष्मीः, ब्रह्मचर्य त्वमीश्वर॥ (वा.पु. 3/20) (शंकर द्वारा विष्णु की स्तुति)- हे ईश्वर! धर्म, यज्ञ, तप, सत्य, अहिंसा, शौच, आर्जव, क्षमा, दान, दया, लक्ष्मी व ब्रह्मचर्य-ये सब तुम्ही हो। %%%%% %%%%%%%%%男男男男男男男男男男男男男男 अहिंसा कोश/61]]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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