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________________ 家乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 हिंसा-अहिंसा का आधारः अशुभ व शुभ भाव %%%%%垢玩垢玩垢听听听听听听听巩巩听听听听听听听听听听听听听听听听听听听垢垢乐乐乐明明明明明年 {173} स्यात् प्राणवियोगफलो व्यापारो हननं स्मृतम्॥ रागद्वेषात् प्रमादाच्च स्वतः परत एव वा॥ बहूनामेककार्याणां सर्वेषां शस्त्र-धारिणाम्। यद्येको घातकस्तत्र सर्वे ते घातकाः स्मृताः॥ आक्रोशितस्ताडितो वा धनैर्वा परिपीडितः॥ यमुद्दिश्य त्यजेत् प्राणान्, तमाहुर्ब्रह्मघातकम्॥ औषधाधुपकारे तु न पापं स्यात्कृते मृते। (अ.पु. 173/1-5) राग या द्वेष से और प्रमाद से, स्वयं या किसी के द्वारा ऐसी चेष्टा, जिससे किसी के प्राण चले जाएं, हिंसा कही गई है। (इस सन्दर्भ में विशेष बात यह है कि कोई व्यक्ति हिंसा म का दोषी है या नहीं- इसका निर्णय इस बात पर निर्भर है कि उस व्यक्ति के मन अशुभ भाव थे या शुभ भाव। जैसे-) ___ 1. जहां बहुत-से शस्त्रधारी व्यक्ति किसी एक व्यक्ति को मारने के उद्देश्य से * आक्रमण करें, वहां यद्यपि किसी एक व्यक्ति-विशेष द्वारा ही हिंसा होती है, तथापि उस म कार्य में सम्मिलित होने वाले सभी व्यक्ति (हिंसा के समर्थक होने के कारण) घातक/ ॐ वध-दोषी माने जाते हैं। 2. यदि कोई व्यक्ति किसी ब्राह्मण (आदि) पर आक्रोश करे, प्रताड़ना करे, धनहरण कर पीड़ित करे, उस स्थिति में जिस पर आक्रोश आदि किया गया है, वह ब्राह्मण + प्राणहीन हो जाय-मर जाय, तो इसमें जो कारणभूत व्यक्ति है, वही ब्रह्मघातक माना ॐ जाएगा, अन्य नहीं। 3. उपकार की भावना से किसी को औषध आदि देने में किसी के प्राण चले जाएं, तो (चिकित्सक को उसकी भावना शुभ होने के कारण) हत्या का पाप नहीं लगता। %%%%%%%%%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听垢听听 2. %%%%%%% %%%%%% % %%%%%%% %%%%%%%%%、 अहिंसा कोश/55]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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