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________________ < %%%%%%%%%%%% %%%%% %%% 穷 穷穷男男男男 {146} प्रदानं प्रच्छन्नं गृहमुपगते सम्भ्रमविधिः, प्रियं कृत्वा मौनं सदसि कथनं चाप्युपकृतेः। अनुत्सेको लक्ष्या निरभिभवसाराः परकथाः, सतां केनोद्दिष्टं विषममसिधाराव्रतमिदम्॥ (नी.श. 57) गुप्त रूप से दान-धर्म करना, कोई अपने दरवाजे आए तो उसका आदर-सत्कार करना, लोगों का भला करना और किसी के सामने अपनी बड़ाई न जताना, दूसरों ने कुछ उपकार किया हो तो सबके सामने उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना, धन-सम्पत्ति पाने पर अभिमान न करना, दूसरों की निंदा या तिरस्कार न करना-ये सब तलवार की धार पर चलने जैसा है, इसे सत्पुरुषों/सज्जनों को न जाने किसने सिखाया। {147} 望明巩巩巩巩巩巩乐垢玩垢织听听听听听听听听听听听听听圳FF听听听听听圳乐听听听听听听听巩巩巩巩巩巩年 अनिन्दा परकृत्येषु स्वधर्मपरिपालनम्॥ कृपणेषु दयालुत्वं सर्वत्र मधुरा गिरः। प्राणैरप्युपकारित्वं मित्रायाव्यभिचारिणे॥ गृहागते परिष्वङ्गः शक्त्या दानं सहिष्णुता। एवं समृद्धिष्वनुत्सेकः परबुद्धिष्वमत्सरः॥ अ-परोपतापि वचनं मौनव्रत-चरिष्णुता। बन्धुभिर्बद्धसंयोगः स्वजने चतुरस्रता॥ उचितानुविधायित्वम्, इतिवृत्तं महात्मनाम्॥ (अ.पु.238/19-22) संत-महात्माओं का समग्र चरित इस प्रकार है-दूसरों के बारे में निन्दा न करना, # अपने धर्म/कर्तव्य का निर्वाह, कृपण लोगों के प्रति दया-भाव, सर्वत्र मधुर भाषण, अपने * प्राण देकर भी किसी का उपकार करना, घर में मित्र आए तो उसे गले लगाना, यथाशक्ति + दान, सहनशीलता, समृद्धि में अभिमान न होना, दूसरों की उन्नति/समृद्धि पर ईर्ष्या नहीं + करना, ऐसा वचन न बोलना जिससे दूसरे को संताप/पीड़ा हो, प्रायः मौन रहना, बन्धुॐ बांधवों के साथ सहयोग-भावना से जुड़े रहना, आत्मीय जनों के प्रति सहयोगी होना, और ॥ उचित कार्य को ही करना। 乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐明乐乐乐乐听听乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐器 अहिंसा कोश/43]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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