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________________ {136} नाम नरके सर्वसत्त्वभयावहे । 原 रौरवे इह लोकेऽमुना ये तु हिंसिता जन्तवः पुरा ॥ त एव रुरवो भूत्वा परत्र पीडयंति तम् । तस्माद् रौरवमित्याहुः पुराणज्ञाः मनीषिणः ॥ (दे. भा. 8/22/10-11 ) जिन प्राणियों को व्यक्ति इस लोक में मारता है, उनका वध करता है, वे ही प्राणी उस हिंसक पुरुष को (जब वह पापकर्म-वश रौरव नरक में जाता है,) सभी प्राणियों के लिए भयंकर रौरव नरक में 'रुरु' प्राणी बन कर पीड़ा देते हैं, इसीलिए पुराण - ज्ञाता मनीषियों ने इस नरक का नाम 'रौरव' बताया है। हिंसाः पापात्मा का लक्षण [वैदिक / ब्राह्मण संस्कृति खण्ड / 40 {137} परनिन्दा कृतघ्नत्वं परमर्मावघट्टनम् ॥ नैष्ठर्यं निर्घृणत्वञ्च परदारोपसेवनम् । परस्वहरणाशौचं देवतानाञ्च कुत्सनम् ॥ निकृत्या वञ्चनं नृणां कार्पण्यं च नृणां वधः । यानि च प्रतिषिद्धानि तत्प्रवृत्तिश्च सन्तता ॥ उपलक्ष्याणि जानीयान्मुक्तानां नरकादनु । (मा.पु. 15/39-42) परनिन्दा, कृतघ्नता, किसी को मर्मान्तक पीड़ा पहुंचाना, निष्ठुरता, निर्दयता, परनारी सेवन, परधनापहरण, अपवित्रता, देवनिन्दा, कपट से किसी को ठगना, कृपणता, नरहत्या तथा अन्य निषिद्ध कर्मों में निरन्तर प्रवृत्ति आदि ऐसे चिन्ह हैं जिनसे यही अनुमान करना चाहिये कि ऐसा करने वाले लोग नरक की यातना भोग कर नरक से निकले हैं और मनुष्य योनि में आये हैं । {138} हिंसा बलमसाधूनाम्। (म.भा. 5/39/69, विदुरनीति - 7/69) हिंसा पापी पुरुषों का ही बल है। 規
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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