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________________ F听听玩玩乐乐玩玩玩玩玩乐乐听听听听听听听玩玩乐乐玩玩乐乐加乐乐頻頻玩玩乐乐玩乐折纸折纸加 {118} ये त्विह वै भूतान्युद्वेजयन्ति नरा उल्बणस्वभावा यथा दन्दशूकास्तेऽपि प्रेत्य नरके दन्दशूकाख्ये निपतन्ति, यत्र नृप दन्दशूकाः पञ्चमुखाः सप्तमुखा उपसृत्य ग्रसन्ति यथा बिलेशयान्॥ यस्त्विह वा अतिथीनभ्यागतान्वा गृहपतिरसकृदुपगतमन्युः दिधिक्षुरिव पापेन चक्षुषा निरीक्षते, तस्य चापि निरये पापद्दष्टेरक्षिणी वज्रतुण्डा गृधाः कङ्ककाकवटादयः प्रसह्योरुबलादुत्पाटयन्ति॥ (भा.पु. 5/26/33,35) जो इस लोक में सों के सदृश उग्र स्वभाव वाले पुरुष प्राणियों को दुःख देते हैं, वे ' स्वयं भी मरने के बाद दन्दशूक नरक में जा गिरते हैं जहां पांच-पांच तथा सात-सात मुख के ॐ सर्प उनके समीप आकर उन्हें चूहों की भांति निगल जाते हैं। जो गृहस्थ पुरुष इस लोक में अतिथि तथा अभ्यागतों की ओर बार-बार क्रोध में भरकर, मानो उन्हें भस्म करना चाहता हो, ऐसी कुटिल दृष्टि से देखता है तो नरक में जाने के बाद उस पापदृष्टि के नेत्रों को गृध्र, कंक, काक ॐ तथा वट आदि वज्र के समान तीखी चोंचों के पक्षी एकाएक बरबस निकाल लेते हैं। {119} प्राणातिपाते यो रौद्रो दण्डहस्तोद्यतः सदा। नित्यमुद्यतशस्त्रश्च हन्ति भूतगणान् नरः॥ निर्दयः सर्वभूतानां नित्यमुद्वेगकारकः। अपि कीटपिपीलानामशरण्यः सुनिघृणः॥ एवंभूतो नरो देवि निरयं प्रतिपद्यते। विपरीतस्तु धर्मात्मा रूपवानभिजायते॥ (म.भा. 13/144/49-51; ब्रह्म. 116/48-50 में आंशिक परिवर्तन के साथ) (महादेव शंकर का पार्वती को कथन) देवि! जो मनुष्य दूसरों का प्राण लेने के लिये हाथ में डंडा लेकर सदा भयंकर रूप धारण किये रहता है, जो प्रतिदिन हथियार उठा है कर जगत् के प्राणियों की हत्या किया करता है, जिसके भीतर किसी के प्रति दया नहीं होती, जो समस्त प्राणियों को सदा उद्वेग में डाले रहता है और जो अत्यन्त क्रूर होने के कारण चींटी और कीड़ों को भी शरण नहीं देता, ऐसा मानव घोर नरक में पड़ता है। जिसका स्वभाव ' * इसके विपरीत होता है, वही धर्मात्मा और रूपवान होकर जन्म लेता है। 5555555卐5555555555555555555555555555555555 中国男明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 अहिंसा कोश/33]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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