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________________ MIRREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEma {114} अपि कीटः पतङ्गो वा न हंतव्यः कथंचन। महद् दुःखमवाप्नोति पुरुषः प्राणिनाशनात्॥ (वि. ध. पु. 3/252/2) कीट हो या पतंगा हो, उसे किसी भी परिस्थिति में नहीं मारना चाहिए। मनुष्य प्राणि-हिंसा के दुष्परिणाम स्वरूप महान् दुःख को प्राप्त करता है। {115} प्राणिहिंसाप्रवृत्ताश्च ते वै निरयगामिनः॥ (म.भा. 12/23/69) जिनकी प्रवृत्ति सदा जीव-हिंसा में होती है, वे निश्चय ही नरक में गिरते हैं। t中FFFF妮蜗蜗蜗蜗蜗垢垢垢玩垢玩垢坍塌垢圳听听听听听听垢玩垢巩巩巩巩巩垢垢玩垢圳明玉 {116} राजहा ब्रह्महा गोनश्चोरः प्राणिवधे रतः। नास्तिकः परिवेत्ता च सर्वे निरयगामिनः॥ (वा.रामा. 4/17/32) राजा का वध करने वाला, ब्रह्म-हत्यारा, गोघाती, चोर, प्राणियों की हिंसा में तत्पर रहने वाला, नास्तिक और परिवेत्ता (बड़े भाई के अविवाहित रहते अपना विवाह करने वाला छोटा भाई) -ये सब के सब नरकगामी होते हैं। {117} यो जन्तुः स्वकृतैस्तैस्तैः कर्मभिनित्यदुःखितः॥ स दुःखप्रतिघातार्थं हन्ति जन्तूननेकधा। ततः कर्म समादत्ते पुनरन्यनवं बहु॥ तप्यतेऽथ पुनस्तेन भुक्त्वाऽपथ्यमिवातुरः। (म.भा.12/329/54-55) . जो जीव अपने ही किये हुए विभिन्न कर्मों के कारण सदा दुःखी रहता है, वही उस दुःख का निवारण करने के लिए नाना प्रकार के प्राणियों की हत्या करता है। तदनन्तर वह और भी बहुत-से नये-नये (हिंसक) कर्म करता है और जैसे रोगी है अपथ्य खाकर दुःख पाता है, उसी प्रकार उन कर्मों से भी वह अधिकाधिक कष्ट पाता में रहता है। विदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/32
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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