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________________ < %%%%%%%%%%%% %%%%%%%%%%%男男男男男男男男 {94} प्राणवियोगप्रयोजनव्यापारो हिंसा, सा च सर्वानर्थहेतुः। __ (यो.सू. 2/30 भो.वृ.) शरीर से प्राण को वियुक्त या पृथक् करने के उद्देश्य से किया गया कार्य या चेष्टा 'हिंसा' है। यह हिंसा सभी अनर्थों का मूल कारण है। 1953 {95} निजन्नन्यान्हिनस्त्येनं सर्वभूतो यतो हरिः॥ (वि.पु. 3/8/10) दूसरों की हिंसा करने वाला उन्हीं भगवान् (हृदयस्थित ईश्वर) की हिंसा करता है, क्योंकि भगवान् हरि सर्वभूतमय हैं- वे सभी प्राणियों में स्थित हैं। {96} हिंसा गरीयसी सर्वपापेभ्योऽनृतभाषणम्॥ (शु.नी. 2/207) ¥¥¥明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听玩玩玩乐乐听听听听听听听听听垢妮FFFFFFFF सब पापों से बढ़कर हिंसा और झूठ बोलना है। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听。 1972 हिंसारतश्च यो नित्यं नेहासौ सुखमेधते॥ (म.स्मृ. 4/170) सर्वदा हिंसा में निरत मनुष्य परपीडा में संलग्न है; वह मनुष्य इस लोक में सुखी व समृद्ध नहीं होता है। हिंसाः एक तामसिक प्रवृत्ति .. {98} सत्त्वोदयाच्च मुक्तीच्छा कर्मेच्छा च रजोगुणात्। तमोगुणाज्जीवहिंसा कोपोऽहंकार एव च॥ (ब्र.वै.पु. 4/24/61-63) शरीर में सत्त्व के उद्रेक होने से जीव को मुक्ति की इच्छा होती है, रजोगुण के उदय क होने पर (सांसारिक) कर्म करने की इच्छा होती है, और तमोगुण से जीवों में हिंसा, क्रोध और अहंकार उत्पन्न होते हैं। 男男男男男男男男弱弱弱弱弱明明明明明明明明明明明明明明明明明明 अहिंसा कोश/27]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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