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________________ AEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEma {1012} नोको बहुभिर्याय्यो वीरो योधयितं यधि॥ न्यस्तवर्मा विशेषेण श्रान्तश्चाप्सु परिप्लुतः। भृशं विक्षतगात्रश्च हतवाहनसैनिकः॥ (म.भा. 9/32/52-53) रणभूमि में किसी एक वीर को बहुसंख्यक वीरों के साथ युद्ध के लिये विवश करना ॐ न्यायसंगत नहीं है। विशेषतः उस वीर को जिसने अपना कवच उतार दिया हो, जो थक कर जल में गोता लगाकर विश्राम कर रहा हो, जिसके सारे अङ्ग अत्यन्त घायल हो गये हों, तथा जिसके वाहन और सैनिक मार डाले गये हों, किसी समूह के साथ युद्ध के लिये बाध्य करना कदापि उचित नहीं है। 11013} निष्प्राणो नाभिहन्तव्यो नानपत्यः कथंचन॥ (म.भा. 12/95/12) जो बलहीन और संतानहीन हो , उस पर तो किसी प्रकार भी आघात न करे। {1014} तवाहंवादिनं क्लीबं निहेतिं परसंगतम्। न हन्याद्विनिवृत्तं च युद्धप्रेक्षणकादिकम्॥ __(या. स्मृ., 1/13/326) 'मैं आपका हूं' ऐसा (विनतिपूर्वक) कहने वाले, हिंजड़े, शस्त्रहीन, दूसरे से युद्ध कर रहे, युद्ध से विरत तथा युद्ध के दर्शक आदि को न मारे। {1015} बलेन विजितो यश्च न तं युध्येत भूमिपः। संवत्सरं विप्रणयेत् तस्माज्जातः पुनर्भवेत्॥ (म.भा. 12/96/4) जो बल के द्वारा पराजित कर दिया गया हो, उसके साथ राजा कदापि युद्ध न करे। * उसे कैद करके एक साल तक अनुकूल रहने की शिक्षा दे; फिर उसका नया जन्म होता है। (वह विजयी राजा के अनुकूल हो जाता है)। ### ##########EEE EEEEEEN वैदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/298
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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