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________________ 作為男明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 {809} श्रद्धया देयम्, अश्रद्धया देयम्, श्रिया देयम्, ह्रिया देयम्, भिया देयम्, संविदा देयम्। (तैत्ति.1/11/3) श्रद्धा से दान देना, अश्रद्धा से भी देना, अपनी बढ़ती हुई (धनसम्पत्ति) में से देना, श्री-वृद्धि न हो तो भी लोक-लाज से देना, भय (समाज तथा अपयश के डर) से देना, और संविद् (प्रेम अथवा विवेक-बुद्धि) से देना (अर्थात् श्रद्धा, अश्रद्धा किसी भी भाव से हो, 'दान' एक धर्म-कार्य है)। ¥¥¥¥¥听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 {810} धर्मागतं प्राप्य धनं यजेत दद्यात्सदैवातिथीन्भोजयेच्च। अनाददानश्च परैरदत्तं सैषा गृहस्थोपनिषत्पुराणी॥ (म.पु. 40/3; म.भा. 1/91/3) धर्म-सम्मत रीति से धनार्जन कर यज्ञ करे, सदैव अतिथियों को दान दे और उन्हें भोजन करावे। दूसरों की बिना दी हुई वस्तु न ले-यही प्राचीन गृहस्थोपनिषात् (गृहस्थ के लिए रहस्यपूर्ण उपदेश-सार) है। अहिंसा और शौच धर्म {811) योऽर्थे शुचिः स हि शुचिः न मृद्वारिशुचिः शुचिः। ततश्चाप्याधिकं शौचम् अहिंसा परिकीर्तित्ता॥ (वि.ध. पु. 3/249/6) मिट्टी व जल से शुद्धि प्राप्त करने वाला शुद्ध नहीं, अपितु जो रुपए-पैसों आदि के मामलों में शुद्ध है, वही शुद्ध है। उससे भी अधिक शुद्धता यदि कोई है, तो वह 'अहिंसा' है। %%%%%%%%%%%% %%%%%%% %% %%%%% %%、 अहिंसा कोश/227]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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