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________________ %%%%% % 男男男男男男男弱弱弱弱男男男%%%%%%%%% दान धर्म के प्रेरक वचन 18049 आ नो भर दक्षिणेनाभिसव्येन प्रमश। (ऋ.8/81/6) दाएं और बाएं-दोनों हाथों से दान करो। {805} दानमेव परं श्रेष्ठं दानं सर्वप्रभावकम्। तस्माद्दानं ददस्व त्वं दानात्पुण्यं प्रवर्तते॥ दानेन नश्यते पापं तस्माद्दानं ददस्व हि॥ (प.पु. 2/39/40-41) (भगवान विष्णु का 'वेन' को कथन-) दान परम श्रेष्ठ (धर्म) है, वही सर्वाधिक प्रभावशाली (सत्कर्म) है, इसलिए तुम 'दान' करो, क्योंकि दान से 'पुण्य' होता है। {8063 绵绵圳坂圳垢圳坂圳圳圳垢垢巩巩巩听听听听听听听听听听圳绵绵明明明明明明明明明明明明听听听听听 दातव्यमसकृच्छक्त्या। (म.भा.13/141/77) अपना कल्याण चाहने वाले पुरुष को निरंतर अपनी शक्ति के अनुसार दान करते रहना चाहिये। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听乐乐听听听听听听听听听听听乐平 {807} शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त सं किर! कृतस्य कार्यस्य चेह स्फातिं समावह। (अ3/24/5) हे मनुष्य! तू सौ हाथों से कमा और हजार हाथों से उसे समाज में फैला दे अर्थात् दान कर दे। इस प्रकार तू अपने किये हुए तथा किये जाने वाले कार्य की अभिवृद्धि कर। {808} विदद्वस उभयाहस्त्या भर। (ऋ. 5/39/1) हे धनिक! दोनों हाथों से दान कर। EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/226
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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