SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ < %% %%% %% %% % % % % % %%% %% %%%%% %% % {773} दानमिति सर्वाणि भूतानि प्रशंसन्ति, दानान्नातिदुष्करम्। (म.ना.उ. 21/2) सभी प्राणी दान की प्रशंसा करते हैं, दान से बढ़कर अन्य कुछ दुर्लभ नहीं है। {774} वदन् ब्रह्माऽवदतो वनीयान्, पृणन्नापिरपृणन्तमभि ष्यात्। (ऋ.10/117/7) जैसे प्रवक्ता विद्वान अप्रवक्ता से अधिक प्रिय होता है, वैसे ही दान-शील धनी व्यक्ति दानहीन धनी से अधिक जनप्रिय होता है। 呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢听听听听听玩 {775} नाकस्य पृष्ठे अधितिष्ठति श्रितो, यः पृणाति स ह देवेषु गच्छति। (ऋ. 1/125/5) जनता को परितृप्त करने वाला दानी स्वर्ग के देवताओं में प्रमुख स्थान प्राप्त करता है। 1776} दक्षिणावतामिदिमानि चित्रा, दक्षिणावतां दिवि सूर्यासः। दक्षिणावन्तो अमृतं भजन्ते, दक्षिणावन्तः प्रतिरन्त आयुः॥ (ऋ. 1/125/6) दानियों के पास अनेक प्रकार का ऐश्वर्य होता है, दानी के लिए ही आकाश में सूर्य प्रकाशमान है। दानी अपने दान से अमृतत्व पाता है, वह अति दीर्घ आयु भी प्राप्त करता है। {777} दक्षिणावान् प्रथमो हूत एति, दक्षिणावान् ग्रामणीरग्रमेति। तमेव मन्ये नृपतिं जनानां, यः प्रथमो दक्षिणामाविवाय॥ (ऋ.10/107/5) दानशील व्यक्ति प्रत्येक शुभ कार्य में सर्वप्रथम आमंत्रित किया जाता है, वह समाज प्र में ग्रामणी अर्थात् प्रमुख होता है, सब लोगों में अग्रस्थान पाता है। जो लोग सबसे पहले दक्षिणा (दान) देते हैं, मैं उन्हें जन-समाज का नृपति (स्वामी एवं रक्षक) मानता हूं। अहिंसा कोश/217]
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy