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________________ “男男男男男男男男男男%%%%%%%%%%%勇勇勇勇勇勇勇勇男男男男男 1769} श्रेयो दानं च भोगश्च धनं प्राप्य यशस्विनि। दानेन च महाभागा भवन्ति मनुजाधिपाः॥ नास्ति भूमौ दानसमं नास्ति दानसमो निधिः॥ (म.भा. 3/1417, पृ. 5923) धन पाकर, उसका दान व भोग करना ही श्रेयस्कर है। दान करने से तो व्यक्ति सौभाग्यशाली नरेश होते हैं। इस धरती पर दान के समान कोई दूसरी वस्तु नहीं है और न ही कोई निधि है। 巩巩巩听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 {770 येन धनेन प्रपणं चरामि, धनेन देवा धनमिच्छमानः। तस्मिन्म इन्द्रो रुचिमा दधातु, प्रजापतिः सविता सोमो अग्निः॥ (अ3/15/6) ( वैदिक ऋषि के उद्गार-) धन के माध्यम से (पुण्य रूपी) धन कमाने का के इच्छुक मैं जिस धन से (विनिमयात्मक) व्यापार करता हूं,उस (धन के सदुपयोग) में मेरी रुचि को इन्द्र, प्रजापति, सविता, सोम व अग्नि देव स्थिर करें। 听听听听听听听听听听听听听听贝贝听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听船 {771} धनं फलति दानेन। (बृ. स्मृ. 1/71; प.पु. 6(उत्तर)/32/61) धन दान देने ही से फलप्रद (सफल) होता है। {772} ऋतं तपः, सत्यं तपः, श्रुतं तपः, शान्तं तपो, दानं तपः। (म.ना.उ.8/1) ऋत (मन का सत्य संकल्प) तप है। सत्य (वाणी से यथार्थ भाषण) तप है। श्रुत (शास्त्रश्रवण या शास्त्र-ज्ञान) तप है। शान्ति (ऐन्द्रियिक विषयों से विरक्ति) तप है। दान का तप है। 男男男男男男男男男男男男男男%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%、 [वैदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/216
SR No.016128
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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